बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
परमार वंश के राजा भोज का शासनकाल 1010 से 1055 के बीच माना जाता है। राजा भोज अत्यंत पराक्रमी, विद्वान और कला पारखी माने जाते थे। कहा जाता है कि उन्होंने 84 ग्रंथों की रचना की थी, लेकिन अब सिर्फ21 ग्रंथ ही उपलब्ध हैं। राजा भोज ने मध्य प्रदेश में भोजपुर नगर बसाया था। बाद में भोजपुर नगर भोजपाल के नाम से मशहूर हुआ। आजकल उस नगर को भोपाल नाम से जाना जाता है। राजा भोज अपने शासनकाल में इस बात के लिए प्रसिद्ध रहे कि उन्होंने कवियों, संगीतकारों और शिक्षकों को राजाश्रय प्रदान किया। कहा जाता है कि उनके राज्य में जुलाहे तक कविता करते थे। हालांकि यह अतिश्योक्ति लगती है। एक बार की बात है। राजा भोज एक साधु के साथ बैठे भोजन कर रहे थे। तभी उन्होंने पूछा कि महाराज, हम यह कैसे जाने कि जो हम खा रहे हैं, वह अपने हक की है या नहीं। इसका पता लगाने का कोई जरिया बताएं। यह सुनकर साधु कुछ देर के लिए चुप हो गया और उसने कहा कि अपने ही नगर में एक बुजुर्ग महिला रहती है। वह आपको बता सकती है कि हक की रोटी कैसी होती है और आप उससे हक की रोटी मांग सकते हैं। अगले दिन राजा भोज उस बुजुर्ग महिला के पास पहुंचे और कहा कि माता, मुझे हक की रोटी दें। उस महिला ने कहा कि राजन! मेरे पास एक ही रोटी है। इसमें से आधी मेरे हक की है और बाकी आधी बेहक की। कल शाम को जब मैं सूत कात रही थी, तो आधी पूनी कातने के बाद अंधेरा हो गया। उसी समय एक बारात इधर से गुजरी। बारात वालों ने मशालें ले रखी थीं। उसी रोशनी में मैंने आधी पूनी काती थी। उस पूनी को बेचकर मैं आटा लाई और उसी आटे की यह रोटी है। इस रोटी पर आधा हक मशाल वालों का है। यह सुनकर राजा भोज चुप रह गए।
राजा भोज ने महिला से मांगी हक की रोटी
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