बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
संत राबिया का जन्म इराक के बसरा में 714 हिजरी को हुआ था। इसीलिए संत राबिया को हजरत बीबी राबिया बसरी भी कहा जाता है। कहते हैं कि जब इनका जन्म हुआ था, तो इनके माता-पिता के घर में दीपक जलाने के लिए तेल और बच्ची को लपेटने के लिए कोई कपड़ा तक नहीं था। वह अपने माता-पिता की चौथी बेटी थीं। फारसी में राबिया का अर्थ भी चौथा होता है। इराक की पुरानी पुस्तकों के मुताबिक पिता की मृत्य के बाद राबिया ने बसरा को छोड़ दिया। उन्होंने रेगिस्तान में तप किया और धीरे-धीरे उन्हें संत के रूप में लोगों ने सम्मान देना शुरू कर दिया। उनका यही कहना था कि अल्लाह से बिना किसी शर्त के प्यार करना ही सच्चा धर्म है। उन्होंने अपना सारा जीवन बड़ी सादगी से गुजारा। एक दिन की बात है। वह कोई पुस्तक पढ़ रही थीं जिसमें लिखा हुआ था कि बुरे लोगों से लोगों से घृणा करो, प्रेम नहीं। राबिया ने इस वाक्य को पढ़ा और कुछ सोचने लगीं। थोड़ी देर बाद उन्होंने पेंसिल उठाई और उस वाक्य को काट दिया। इस बात को काफी दिन बीत गए। एक दिन उनसे मिलने दूसरे प्रदेश का एक संत आया। वह अपना समय बिताने के लिए उस किताब को पढ़ने लगा। जब उसने उस कटे हुए वाक्य को पढ़ा तो उसने सोचा कि इस वाक्य को काटने वाला व्यक्ति जरूर नासमझ होगा। थोड़ी देर बात राबिया वहां आई तो उस संत ने वह वाक्य दिखाते हुए कहा कि इसे काटने वाला जरूर नास्तिक रहा होगा। तब राबिया ने बताया कि यह मैंने ही काटा है। उस संत ने कहा कि बुरा आदमी तो बुरा ही करता है, उससे प्रेम कैसे किया जा सकता है। राबिया ने कहा कि प्रेम किया नहीं जाता, यह मन में अंकुरित हो जाता है। प्रेम देने की चीज है, लेने की नहीं। बुरे आदमी से प्रेम करने पर वह भी प्रेम करेगा।
बुरे आदमी से भी प्रेम करो, घृणा नहीं
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