बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
पद्मश्री बेकल उत्साही का जन्म 1 जून 1924 को बलरामपुर जिले के उतरौला तहसील के जमींदार जफर खां लोदी के यहां हुआ था। इनकी मां का नाम बिस्मिल्लाह लोदी था। बेकल उत्साही का वास्तविक नाम मोहम्मद शफी खां लोदी था। वह कांग्रेस के उत्साही कार्यकर्ता थे। आजादी की लड़ाई के दौरान वह कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे। उन्हें सन 1945 में बाराबंकी के देवाशरीफ जाते समय बेकल नाम रखने की प्रेरणा शाह हाफिज मियां के ‘बेदम गया, बेकल आया’ कथन से मिली थी। इसके बाद उन्होंने अपना नाम बेकल वारसी रख लिया और मुशायरों में इसी नाम से कविता करने लगे। नाम के साथ उत्साही जुड़ने की भी एक कहानी है। सन 1952 में देश का पहला आम चुनाव होने जा रहा था। पंडित जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस उम्मीदवारों के पक्ष में जगह-जगह जनसभाओं को संबोधित कर रहे थे। इसी क्रम में उन्हें गोंडा भी आना था। कांग्रेस उम्मीदवार के लिए गोंडा के टॉमसन इंटर कालेज में एक सभा आयोजित की गई थी। आज टॉमसन इंटर कालेज का नाम शहीदे आजम सरदार भगत सिंह इंटर कालेज है। नेहरू को सभा में आने में देर होने पर लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया, तो बेकल वारसी ने अवधी भाषा में किसान भारत नामक अपनी रचना का पाठ करना शुरू कर दिया। लोग शांत हो गए। नेहरू आए तो लोगों को शांत देखकर बहुत प्रसन्न हुए। तभी किसी ने कहा कि देश को ऐसे उत्साही युवक की जरूरत है। नेहरू ने तपाक से उत्तर दिया-है न, यह बेकल उत्साही। तभी से बेकल वारसी ने अपने नाम से वारसी को विदा कर दिया और उत्साही जोड़ लिया। बेकल उत्साही कांग्रेस के बड़े नेता ही नहीं, एक प्रगतिशील शायर के रूप में आज भी जाने जाते हैं।
मोहम्मद शफी खां लोदी से बने बेकल उत्साही
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