Sunday, February 2, 2025
12.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiसिर साटे, रुख रहें तो भी सस्ता जाण

सिर साटे, रुख रहें तो भी सस्ता जाण

Google News
Google News

- Advertisement -

बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
पेड़-पौधों को जीव मानने की परंपरा भारत में सदियों से चली आ रही है। यही वजह है कि पेड़, पौधों, नदियों और पर्यावरण को सुरक्षित रखने का प्रयास हमारे देश में सदियों से लोग करते आ रहे हैं। पेड़-पौधों को बचाने के लिए अगर जान भी देनी पड़े, तो हमारे पूर्व इससे कभी पीछे नहीं हटते थे। ऐसी ही एक महिला थीं अमृता बिश्नोई जिन्होंने खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दे दी थी। वह राजस्थान की पहली पर्यावरणविद मानी जाती हैं। कहा जाता है कि सन 1730 में जोधपुर के महाराजा अभय सिंह ने एक महल बनवाना शुरू किया था। महल को बनाने में लगने वाले ईंटों और चूना को पकाने के लिए लकड़ी की जरूरत थी। उन्होंने अपने सैनिकों को खेजड़ी के पेड़ों को काटने की आज्ञा दे दी। उन दिनों राजस्थान के रेतीले इलाकों में भी हरियाली हुआ करती थी। राजस्थान में खेजड़ी के पेड़ बहुतायत में पाए जाते थे। महिलाएं खाना पकाने के लिए उसकी सूखी टहनियों का उपयोग करती थीं, लेकिन पेड़ नहीं काटती थीं। जोधपुर में रहने वाली अमृता बिश्नोई को जैसे ही यह पता चला कि महाराजा ने खेज़ड़ी के पेड़ काटने की आज्ञा दी है, वह तुरंत वहां पहुंची और पेड़ काटने से सैनिकों को मना किया। वह पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं। लेकिन एक सैनिक ने अपनी कुल्हाड़ी चला दी। अमृता का सिर कटकर नीचे गिर गया। बस फिर क्या था? अमृता बिश्नोई की तीनों बेटियों आसू, रत्ती और भागू और 363 बिश्नोई स्त्री-पुरुषों ने खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए अपना बलिदान दिया। महाराजा अभय सिंह को जब इसकी जानकारी मिली, तो वह भागे-भागे बिश्नोई गांव पहुंचे और सैनिकों के कृत्य के लिए माफी मांगी और भविष्य में पेड़ों को न काटने का वचन दिया।

- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

जीवन के अंतिम पड़ाव में आराध्य देव के दर्शन का सुख उठाते बुजुर्ग

संजय मग्गूभारत की बहुसंख्यक आबादी सदियों से धार्मिक रही है। धर्म और जीवन शैली दोनों इस तरह आपस में घुलमिल गए थे कि धर्म और जीवन...

संघर्ष के बिना जीवन हो जाता नीरस

बोधिवृक्षअशोक मिश्रजीवन में अगर संघर्ष न हो, तो जीवन बहुत नीरस, ऊबाऊ हो जाता है। जीवन का संघर्ष ही मनुष्य और प्रकृति में पाए...

कहीं रेवड़ियां बिगाड़ तो नहीं देंगी अर्थव्यवस्था की चाल?

संजय मग्गूदिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार खत्म होने में सिर्फ दो दिन बचे हैं। भाजपा, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस सहित अन्य सियासी पार्टियां मतदाताओं...

Recent Comments