बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
ईर्ष्या कभी सुखद नहीं होती है। ईर्ष्यालु व्यक्ति अपने जीवन में हमेशा परेशान रहता है। ऐसे व्यक्ति से दूसरे लोग खुश नहीं रहते हैं। इसकी वजह से वह किसी का प्रिय भी नहीं बन पाता है। ईर्ष्या और चुगलखोरी व्यक्तित्व के विकास में बाधक होती है। कई बार तो यह मनुष्य के सामने इतना बड़ा संकट पैदा कर देती है कि ईर्ष्यालु व्यक्ति का अपनी जान बचाना मुश्किल हो जाता है। इस बारे में एक किस्सा सुनाया जाता है। कहते हैं कि किसी राज्य का राजा बहुत दयालु था। वह अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखता था। उसके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। दूर-दूर से व्यापार करने दूसरे राज्य के व्यापारी भी आया करते थे। एक दिन किसी बात पर राजा दूसरे देश के एक विदेशी व्यापारी से नाराज हो गया। राजा ने गुस्से में आकर व्यापारी को फांसी पर चढ़ाने की सजा दे दी। फांसी की सजा सुनने के बाद व्यापारी ने अपनी भाषा में राजा को खूब गालियां देनी शुरू कर दीं। राजा उस व्यापारी की भाषा को समझ नहीं पा रहा था। उसने अपने दरबारियों से पूछा कि यह क्या कह रहा है? एक मंत्री ने खड़े होकर बताया कि महाराज, यह आपको दुआएं दे रहा है। आप का राज्य हमेशा फलता फूलता रहे। आप चिरंजीवी हों। तभी दूसरे मंत्री ने खड़े होकर कहा कि नहीं महाराज, यह आपको गालियां दे रहा है। राजा ने पहले मंत्री की ओर देखा, तो उसने कहा, हां महाराज, यह आपको गालियां दे रहा है। यह सुनकर राजा ने व्यापारी को सजा मुक्त करते हुए कहा कि तुम निर्दोष थे, इस वजह से तुम्हें गुस्सा आया। पहले मंत्री ने व्यापारी को निर्दोष जानकर उसे बचाने का प्रयास किया और इसलिए झूठ बोला। दूसरे मंत्री ने ईर्ष्यावश पहले मंत्री की पोल खोली। ऐसा ईर्ष्यालु व्यक्ति मेरे राज्य में रहने लायक नहीं है।
ईर्ष्यालु व्यक्ति राज्य में रहने लायक नहीं
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