बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
सिकंदर को संस्कृत भाषा में अलक्क्षेंद्र कहा जाता है। वह मकदूनिया (मेसेडोनिया) के राजा फिलिप का पुत्र था। सिकंदर का जन्म 356 ईसापूर्व माना जाता है। कहा जाता है कि सिकंदर ने उस समय तक ज्ञात दुनिया को जीत लिया था, लेकिन तथ्यात्मक रूप से उसका साम्राज्य पूरी दुनिया के 15 प्रतिशत भाग में ही था। एक बार की बात है। सिकंदर ने एक राज्य पर हमला किया। राज्य छोटा सा था। स्वाभाविक है कि उस राज्य की सेना भी सिकंदर के मुकाबले में काफी कम थी। युद्ध होने पर उस राज्य के राजा की पराजय निश्चित थी। राजा ने एक युक्ति भिड़ाई और अपनी पूरी सेना को अग्रिम मोर्चे पर खड़ा कर दिया। जैसे ही युद्ध की घोषणा हुई, उस राजा ने तुरंत आत्म समर्पण कर दिया। राजा गिरफ्तार कर लिया गया। उसे बंदी बनाकर सिकंदर के सामने पेश किया गया। राजा से सिकंदर ने पूछा कि जंग शुरू होते ही तुमने आत्म समर्पण क्यों कर दिया। उस राजा ने कहा कि जब युद्ध में पराजय निश्चित थी, तो अपनी प्रजा और सैनिकों को मरवाना मुझे उचित नहीं लगा। अपने सैनिकों और प्रजा की रक्षा करना एक राजा का धर्म होता है। तभी वहां पर कुछ शोर होने लगा। उस राजा ने सिकंदर से पूछा कि यह शोर कैसा हो रहा है? तब सिकंदर ने जवाब दिया कि मेरे सैनिक लूटपाट कर रहे हैं। पराजित राजा ने तत्काल जवाब दिया कि जब मैंने पराजय स्वीकार कर ली, तो फिर यह राज्य भी आपका हुआ। अपने ही राज्य में लूटपाट का आदेश देने वाले शायद आप पहले राजा हैं। यह सुनते ही सिकंदर ने तत्काल लूटपाट बंद करने का आदेश दिया। उस राजा को स्वतंत्र कर दिया और राजपाट का दायित्व उसे सौंपकर वह आगे बढ़ गया। इस प्रकार चतुराई से उस राजा ने अपने सैनिकों और प्रजा के प्राणों की रक्षा की।
प्रजा की रक्षा करना राजा का दायित्व
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