अशोक मिश्र
एथेंस के महान दार्शनिक सुकरात के शिष्य और अरस्तू के गुरु प्लेटो का जन्म 427 या 428 ईसा पूर्व हुआ था। कहा जाता है कि प्लेटो नाम उसके कुश्ती के कोच ने दिया था। वैसे उनका वास्तविक नाम अरिस्तोक्लेस था और उनके पिता का नाम अरिस्तोन था। कुछ लोग यूरोप में ध्वनियों के वर्गीकरण में प्लेटो की बहुत बड़ी भूमिका मानते हैं। सुकरात की मृत्यु के बाद प्लेटों ने कई देशों की यात्राएं की और एथेंस लौटने के बाद उसने एक अकादमी की स्थापना की और अपने शिष्यों को दर्शन पढ़ाना शुरू किया। एक बार की बात है। उसक अकादमी में कुछ लोग उससे मिलने आए। तब तक प्लेटो की विद्वता की धाक पूरे यूरोप में फैल चुकी थी। आम तौर पर प्लेटो सामने वाले से ही सीखने की कोशिश करने लगते थे। वह ज्यादातर चुप रहते थे और लोगों को बोलने का मौक देते थे। ऐसी स्थिति में उनसे कुछ सीखने की लालसा लेकर आने वाले लोग यही सोचने लगते थे कि प्लेटो की विद्वता के बारे में जो बातें कही जाती है, कहीं वह झूठी तो नहीं है। यह तो एकदम साधारण व्यक्ति की तरह लगते हैं। उनके इस रवैये से अकादमी में पढ़ने वाले छात्र भी परेशान रहते थे। उनके मन में भी शंका पैदा होने लगा। एक दिन एक छात्र ने यह बात प्लेटो से कह भी दी। यह सुनकर प्लेटो ने गंभीरता से कहा कि मेरे बारे में कोई क्या सोचेगा, इससे मैं चिंतित नहीं होता हूं। मैं हर व्यक्ति से कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करता हूं। जिस तरह बूंद-बूंद से घड़ा भरता है, वैसे ही थोड़ा-थोड़ा ज्ञान हासिल करने से व्यक्ति विद्वान होता है। ज्ञान का सागर तो अथाह है, उसमें से कुछ बूंदें ही मेरे पास हैं। इसलिए किसी को भी छोटा नहीं समझना चाहिए। यह सुनकर प्लेटो के शिष्य लज्जित हो गए।
बोधिवृक्ष : प्लेटो ने कहा, किसी को छोटा मत समझो
- Advertisement -
- Advertisement -
Desh Rojana News