अशोक मिश्र
प्रसिद्ध सूफी संत और विद्वान अबुल हसन नूरी का जन्म बगदाद में 840 ईस्वी में हुआ था। वैसे कहा जाता है कि उनके पूर्वज फारस के थे। उनके पिता अफगानिस्तान की यात्रा करने के बाद बगदाद पहुंचे थे। नूरी को उनके समकालीन संतों और धार्मिक नेताओं ने अमीर उल कुलुब यानी दिलों का नेता उपाधि से भी नवाजा था। संत नूरी बहुत सादा जीवन जीते थे। वह लोगों को सच्ची और सीधी बात बताया करते थे। वह गरीबों और जरूरतमंदों की बहुत मदद किया करते थे। यही वजह थी कि वह लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। एक बार की बात है। उनके पास एक नौजवान आया और बोला कि मैं अपनी गृहस्थ जीवन से बहुत परेशान हूं। मेरी अपने परिवार वालों से बिलकुल नहीं पटती है। बीवी और परिवार के अन्य लोगों से लगभग रोज झगड़ा होता है। मैं तो गृहस्थ जीवन से बहुत ऊब गया हूं। मैं अब आपकी तरह संत बनना चाहता हूं। इसलिए आप मुझे अपने कपड़े दे दीजिए, ताकि मैं आपकी ही तरह हो जाऊं। नौजवान की बात सुनकर संत नूरी समझ गए कि इस युवक को क्रोध बहुत आता है जिसकी वजह से यह परिवार वालों से झगड़ता होगा। उसकी बात पर उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा,अच्छा यह बताओ कि किसी पुरुष को महिला के कपड़े पहना देने से वह पुरुष महिला हो जाएगा। या महिला को पुरुष के कपड़े पहना दिए जाएं, तो क्या महिला पुरुष हो जाएगी? नौजवान ने कहा कि नहीं। तब संत नूरी ने हंसते हुए कहा कि मेरे कपड़े पहनने की जगह अपना स्वभाव बदलो। स्वभाव बदलने पर तुम्हें अपनी गृहस्थी भी अच्छी लगने लगेगी। तुम्हारा परिवार भी तुम्हें पसंद करने लगेगा। लड़ाई झगड़े भी बंद हो जाएंगे। नूरी की बात समझकर नौजवान अपने घर चला गया।
बोधिवृक्ष : अपना स्वभाव बदलो, गृहस्थी अच्छी लगेगी
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