दास प्रथा कभी पूरी दुनिया में थी। कहीं ज्यादा बर्बर व्यवहार दासों के साथ किया जाता था, तो कहीं कम। भारत में भी दास प्रथा किसी न किसी रूप में मौजूद थी। कहते हैं कि अमेरिका में दास प्रथा का बड़ा घिनौना रूप प्रचलित था। दासों के हाथ पैरों पर गर्म खौलता पानी डालकर उन्हें प्रताड़ित किया जाता था। गर्म सलाखों से दागना तो आम बात थी। जब कोई दास बूढ़ा हो जाता और उसका बच्चा जवान होने लगता, तो दास का मालिक बूढ़े दास को जिंदा जला दिया करता था। दासों की महिलाओं का उपयोग यौन दासी के रूप में किया जाता था।
कहते हैं कि एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर केल्विन एलिस स्टो की पत्नी हैरियट एलिजाबेथ बीचर स्टो से दासों के साथ हो रहा अत्याचार देखा नहीं गया। वह इतनी व्यथित हुई कि एक दिन उन्होंने कागज कलम उठाकर दासों की व्यथा-कथा लिखनी शुरू की। उनकी लेखनी में दासों की पीड़ा का इतना मार्मिक वर्णन था कि जब वह पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ तो पूरे अमेरिका में हंगामा मच गया। लोगों ने उसको पढ़ना शुरू किया,तो हैरियट की लेखनी का लोहा मान लिया। धीरे-धीरे उनकी ख्याति बढ़ने लगी।
यूरोप में भी किताब अंकल टाम्स केबिन की खूब चर्चा हुई। कहा जाता है कि इस पुस्तक को पढ़कर बहुत सारे लोग तो फूट फूटकर रोते थे। उन दिनों अब्राहम लिंकन की ख्याति भी बढ़ चली थी। उन्होंने पुस्तक अंकल टाम्स केबिन को पढ़ा और उसके बाद हैरियट से मिलने पहुंचे। उन्होंने हैरियट से कहा कि आपको इतिहास में दास प्रथा के खिलाफ लेखनी से युद्ध लड़ने वाली महान योद्धा के रूप में जाना जाएगा। इसके बाद अब्राहम लिंकन ने भी दास प्रथा के खिलाफ मुहिम छेड़ दी और राष्ट्रपति बनने के बाद वह इसे खत्म कराने में सफल हुए। आज भी दास प्रथा पर लिखी गई पुस्तक अंकल टाम्स केबिन को बेस्ट माना जाता है।
अशोक मिश्र