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अज्ञात बीमारी का शिकार हो रहे पहाड़ी इलाकों के मवेशी

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एक ओर जहां इंसान कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी से लड़ रहा है, तो वहीं दूसरी ओर केंद्रशासित प्रदेश जम्मू के डोडा स्थित पहाड़ी इलाकों में मवेशियों के बीच एक अज्ञात बीमारी ने कोहराम मचा रखा है। इसने अब तक कई पालतू मवेशियों की जानें ले ली हैं। ये मवेशी गरीबों की आय का प्रमुख स्रोत हैं। ऐसे में इन जानवरों की मौत उन्हें आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचा रहा है। पशु चिकित्सा विभाग अभी तक इस बीमारी के कारणों और इसके समुचित इलाज का पता लगाने में विफल रहा है।

ज्ञात हो कि डोडा जिले के ठाठरी उपमंडल में तीन तहसीलों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र और गांव दूरदराज पहाड़ी इलाकों पर आबाद हैं। इनमें से ज्यादातर पंचायतें सर्दियों के चार महीने बर्फ से ढकी रहती हैं। अन्य क्षेत्रों से पूरी तरह से कट जाती हैं। इस दौरान जहां स्थानीय लोगों को कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, वहीं यहां का विकास कार्य भी ठप हो जाता है। इससे प्रशासनिक स्तर पर ग्रामीणों को कोई मदद नहीं मिल पाती है।

वर्तमान में, इन क्षेत्रों के लोगों की आज सबसे बड़ी समस्या मवेशियों में फैल रही अज्ञात बीमारी है। इस संबंध में स्थानीय लोगों का कहना है कि एक सप्ताह पहले उनके मवेशियों को बुखार आता है। धीरे धीरे वह खाना पीना बंद कर देते हैं और फिर कुछ ही दिनों में उनकी मौत हो जाती है। गौरतलब है कि इन दूरदराज ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए मवेशी पालन सबसे बड़ी आजीविका का माध्यम है।

यह उनके आर्थिक सशक्तिकरण का भी एक अहम जरिया है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इस इलाके के कई घर ऐसे हैं जहां सैकड़ों मवेशी पाले जाते हैं। इस संबंध में स्थानीय लोगों ने कई बार प्रशासन से गुहार लगाई कि इस ओर गंभीरता से ध्यान दिया जाए और मवेशियों की जान बचाने के इंतजाम किया जाएं। लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गई है और न ही प्रशासन द्वारा गांव में कोई पशु चिकित्सक भेजा गया है। इससे लोगों को काफी परेशानी हो रही है।

इस संबंध में एक सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद इकबाल कहते हैं कि सर्दी में इन पहाड़ी इलाकों के निवासियों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। यह क्षेत्र तीन महीने तक बर्फ के कारण बंद रहता है। यदि उनकी इन सभी समस्याओं का समाधान सर्दियों से पहले कर लिया जाए तो इस क्षेत्र के लोगों का जनजीवन प्रभावित नहीं हो सकता है। सामाजिक कार्यकर्ता आदिल हुसैन कहते हैं कि मवेशियों के बीच यह अज्ञात महामारी हर साल इस इलाके में फैलती है, जिसमें सैकड़ों मवेशियों की जान चली जाती है।

मवेशी इन पहाड़ी इलाकों के लोगों के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत है। स्थानीय महिला सायमा बानो चिंता व्यक्त करते हुए कहती हैं कि बीमारी से मवेशियों की मौत से होने वाले नुकसान का कोई मुआवजा भी नहीं मिलता है। प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए ताकि गरीबों के नुकसान की पूर्ति हो सके।

इस संबंध में हमने डोडा के जिला विकास आयुक्त विश्वपाल महाजन को पहले ही सूचित कर दिया है कि वह हमारी पीड़ा को समझें और न केवल जानवरों की मौत का मुआवजा दिलाने की व्यवस्था करें बल्कि बचे हुए मवेशियों को इस बीमारी से बचाने के लिए बेहतर इलाज की भी व्यवस्था करें। अभी तक हमें कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। यह बीमारी क्या है, और किन कारणों से हो रही है?

इस संबंध में स्थानीय पशु चिकित्सक डॉ. तालिब हुसैन कहते हैं कि अभी तक निश्चित रूप से इसके कारणों का पता नहीं लगाया जा सका है। माना यह जा रहा है कि यह बीमारी बदलते पर्यावरण और खराब मौसम के कारण हो सकती है। इसके अलावा खराब घास भी इस बीमारी के फैलने का कारण बनती है। उन्होंने पशुपालकों को सलाह दी कि वह अपने मवेशी को खराब घास की जगह ताजी घास खिलाएं। सरकार और प्रशासन इस मुद्दे को गंभीरता से ले रहे हैं, लेकिन डोडा जिले में पशु चिकित्सकों की भारी कमी है। इसलिए डॉक्टर घर-घर जाकर मवेशियों का निरीक्षण नहीं कर सकते हैं। (चरखा)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

-बाबर नफीस

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