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सीमित संसाधनों से प्रभावित होती कृषि

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पूजा कुमारी
साल की शुरुआत में केंद्र सरकार ने किसानों को तोहफा देते हुए जहां डीएपी पर विशेष पैकेज का एलान किया तो वहीं दूसरी ओर फसल बीमा योजना के दायरे का विस्तार करते हुए 4 करोड़ अतिरिक्त किसानों को इससे जोड़ा है. इससे किसानों की एक बड़ी संख्या अब फसल नुकसान होने पर आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकेगी. सरकार ने डीएपी खाद पर 3,850 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी देने का फैसला किया है. इससे किसानों को 50 किलो का डीएपी बैग 1,350 रुपये में मिलता रहेगा. यदि सब्सिडी नहीं होती तो इसी बैग की कीमत के लिए किसानों को 1525 रुपए अदा करने होते. अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी की कीमतों में वृद्धि के बावजूद सरकार का यह फैसला किसानों को राहत देने वाला है.
वहीं प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आरडब्ल्यूबीसीआईएस) को 15वें वित्त आयोग की अवधि के अनुरूप विस्तारित करने के लिए बढ़ा दिया गया है. इसे वित्त वर्ष 2024-25 के 66,550 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2025-26 के लिए 69,515.71 करोड़ रुपये कर दिया गया है. यह रहे कि यह दोनों योजनाएं विभिन्न अप्रत्याशित घटनाओं के कारण फसल के नुकसान या क्षति से प्रभावित किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं. पीएमएफबीवाई, जहां उपज जोखिम के आधार पर फसल के नुकसान को कवर करता है, वहीं आरडब्ल्यूबीसीआईएस मौसम संबंधी जोखिमों पर फोकस करता है.
किसानों के हितों में सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों के बावजूद ज़मीनी स्तर पर देखा जाये तो सूरतेहाल कुछ और ही नज़र आता है. देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां अलग अलग भौगोलिक परिस्थितियों के कारण किसानों को कृषि कार्य में अलग तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. राजस्थान के बीकानेर जिला स्थित लूणकरणसर ब्लॉक ऐसा ही एक उदाहरण है. अपनी विशिष्ट भौगोलिक विशेषताओं और सीमित प्राकृतिक संसाधनों के कारण यहां कृषि संबंधी कार्यों में किसानों के लिए कई प्रकार की चुनौतियां हैं. एक ओर जहां वह सूखा, पानी की कमी और मिट्टी की कम उर्वरता का सामना करते हैं, वहीं दूसरी ओर वे बाजार की पहुंच से दूर और उसके सीमित विकल्पों के कारण भी अपनी फसल का बेहतर दाम प्राप्त करने से दूर रह जाते हैं.
इस संबंध में लूणकरणसर स्थित करणीसर गांव के 57 वर्षीय किसान आशु रामजी कहते हैं कि ‘यहां के किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या पानी की कमी है. भूजल स्तर लगातार घट रहा है और वार्षिक वर्षा की कमी से भी खेती में कठिनाइयां आ रही हैं. यहां औसत वार्षिक वर्षा मात्र 260 मिमी होती है, जो राष्ट्रीय औसत (लगभग 1200 मिमी) के मुकाबले बहुत कम है. लगातार गिरते भूजल स्तर और नहरों की सीमित संख्या के कारण सिंचाई के लिए किसानों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है. सरकारी स्तर पर पानी की समुचित व्यवस्था नहीं होने से किसानों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. खेती के लिए हमें कुएं की जरूरत है. पानी खारा और कम होने के कारण खेती अच्छी नहीं होती है. इससे पशुओं के लिए भी चारा उपलब्ध कराना भी मुश्किल हो जाता है. जब बारिश आती है तो थोड़ी बहुत खेती हो जाती है, लेकिन बाजार में उसकी अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है, ऐसे में हमें कुछ समझ में नहीं आता है कि हम क्या करें?
वह कहते हैं कि कुछ किसान कृषि कार्यों से विमुख होकर रोज़गार के अन्य साधन अपनाने की सोच रहे हैं. इसके लिए शहर जाकर मेहनत मेहनत करके अपने बच्चों की भूख मिटाना चाहते हैं, लेकिन वहां भी ऐसा संभव नहीं है क्योंकि आजकल इंसानों की जगह मशीनों ने ले ली है. जब मशीनें घंटों का काम मिनटों में कर देती हैं, तो उन्हें हमारी क्या ज़रूरत होगी? पीढ़ी दर पीढ़ी खेती करने की वजह से हमारे पास अन्य कौशल का अभाव है.
कृषि के साथ साथ पशुपालन भी राजस्थान के किसानों की आय का एक प्रमुख स्रोत रहा है. किसान मवेशियों को बेच कर भोजन और कपड़े की व्यवस्था कर लेते थे, लेकिन बदलती परिस्थिति में अब मवेशियों की खरीद बिक्री कम हो गई है. प्रत्येक पांच वर्षों पर कराये जाने वाले पशुधन गणना (20वीं पशुधन गणना 2019) के अनुसार देश में कुल पशुधन आबादी करीब 535.78 मिलियन (53 करोड़ 57 लाख) है जो 2012 की तुलना में 4.6 प्रतिशत अधिक है. हालांकि इस अवधि में राजस्थान में पशुधन की संख्या 56.8 मिलियन (5.68 करोड़) दर्ज की गई जो 2012 की तुलना में 1.66 प्रतिशत कम है. इसके बावजूद उत्तर प्रदेश के बाद राजस्थान देश का दूसरा सबसे अधिक पशुधन उपलब्ध कराने वाला राज्य बना हुआ है.
इस संबंध में एक किसान राम किशोर कहते हैं कि ‘हमारे बच्चे अब खेती करना पसंद नहीं करते हैं क्योंकि इसमें लागत से बहुत कम मुनाफा हो रहा है. जो फसल तैयार होती है, उसे कम कीमत पर बेचना हमारी मजबूरी है. किसानों को बीज और खाद भी बहुत महंगे दामों पर उपलब्ध होते हैं, जिससे काफी परेशानी होती है. सरकार और कृषि विभाग को इस दिशा में पहल करने की ज़रूरत है. जिससे उन्हें अच्छे बीज और कम कीमत पर खाद उपलब्ध हो सके. वहीं उन्हें आधुनिक तकनीकों और उपकरणों के इस्तेमाल की जानकारी और प्रशिक्षण दी जाए ताकि बदलते कृषि व्यवस्था से यहां के किसान भी जुड़ सकें. इसके अतिरिक्त उन्हें सस्ते तथा गुणवत्तापूर्ण बीज, खाद और कीटनाशक भी उपलब्ध कराए जाने की आवश्यकता है.
एक अन्य किसान जोड़ा सिंह कहते हैं कि यहां के किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य नहीं मिलता है. बाजार के अभाव में निजी क्षेत्र के व्यापारी अक्सर अपनी शर्तों पर फसल खरीदते हैं, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है. किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले, इसके लिए प्रभावी नीतियां बनायी जानी चाहिए. सरकारी नीतियों में करणीसर जैसे पिछड़े इलाकों के किसानों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. यहां की जलवायु परिस्थितियों, कृषि पद्धतियों और स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखने वाली नीतियों का अभाव किसानों के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है. वह कहते हैं कि किसानों को कृषि सब्सिडी, पर्याप्त ऋण और आधुनिक कृषि प्रशिक्षण उपलब्ध कराने की आवश्यकता है.
करणीसर जैसे पिछड़े इलाके के किसानों को उनका हक मिले, इसके लिए सरकार, सामाजिक संस्थाओं और आम नागरिकों को मिलकर प्रयास करने होंगे. हालांकि पिछले वर्ष नवंबर में राजस्थान सरकार ने किसानों को उनकी फसल का बेहतर मूल्य मिल सके इसके लिए ई-मंडी प्लेटफार्म की सुविधा शुरू करने की घोषणा की है. इसके तहत किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए मंडी का इंतजार न करना पड़ेगा और वह इस सुविधा के माध्यम से घर बैठे अपनी फसल बेच सकेंगे. राज्य सरकार की यह घोषणा उसके वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में भी शामिल थी.
कृषि में आत्मनिर्भरता बनाये रखने के लिए सरकार को चाहिए कि वह किसानों की समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर समाधान करे, जल संकट को कम करने के लिए ठोस योजनाएं बनाने तथा बाजारों तक किसानों की पहुंच को सुगम बनाने के प्रयास करने चाहिए. दरअसल, किसानों की समस्याओं का समाधान एक दिन में नहीं हो सकता, लेकिन अगर सरकार, संस्थाएं और किसान स्वयं मिलकर समन्वित और व्यापक रणनीति अपनाएं, तो न केवल करणीसर गांव के किसानों का भविष्य उज्जवल हो सकता है बल्कि कृषि पैदावार भी बढ़ जाएगी. (चरखा फीचर्स)

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