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सुधार के बावजूद कई संकटों से घिरा भारतीय विमानन क्षेत्र

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प्रियंका सौरभ
भारत का विमानन क्षेत्र, जो वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है, आर्थिक विकास और कनेक्टिविटी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नागरिक उड्डयन महानिदेशालय के तहत एक मजबूत नियामक ढांचे के बावजूद, कोझीकोड (2020) में एयर इंडिया एक्सप्रेस दुर्घटना जैसी बार-बार होने वाली घटनाएं विमानन सुरक्षा में प्रणालीगत चुनौतियों को उजागर करती हैं। अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ तालमेल बिठाने और यात्रियों का भरोसा सुनिश्चित करने के लिए इन मुद्दों पर विचार करना महत्त्वपूर्ण है। चिंतनीय स्थिति यह है कि अभी चाहे इंडिगो, स्पाइसजेट और गोएयर जैसी निजी कंपनियाँ हों या एयर इंडिया जैसी सरकारी कंपनी, लगभग सभी एयरलाइंस वित्तीय मोर्चे पर लगातार संघर्ष कर रही हैं। बोइंग 737 मैक्स विमानों को परिचालन से हटा दिए जाने से स्थिति और भी खराब हो गई है। भारतीय विमानन बाजार में  विमान किराया तेजी से बढ़ रहा है। इससे मध्यम वर्ग के यात्री जो इकोनॉमी क्लास में यात्रा करते थे, वे अब ट्रेन को तरजीह दे रहे हैं।
भारत का विमानन बाजार वैश्विक स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ने वाले बाजारों में से एक है, जिसमें हवाई यात्रियों की संख्या बढ़ रही है, हवाई अड्डे के बुनियादी ढांचे का विस्तार हो रहा है। दिल्ली के टर्मिनल 3 और बैंगलोर के केम्पेगौड़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे जैसे आधुनिक हवाई अड्डों का निर्माण मजबूत बुनियादी ढांचे के विकास को दर्शाता है। नागरिक उड्डयन महानिदेशालय आॅपरेटरों और विमानों के लिए सुरक्षा अनुपालन और प्रमाणन सुनिश्चित करता है। नागरिक उड्डयन महानिदेशालय की वार्षिक सुरक्षा आॅडिट रिपोर्ट एयरलाइनों और हवाई अड्डों के परिचालन मानकों का मूल्यांकन करती है। भारत अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन अनुलग्नक 13 पर हस्ताक्षरकर्ता है, जो दुर्घटनाओं की जांच और वैश्विक सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित करता है।  प्रमुख भारतीय वाहकों ने सुरक्षा और दक्षता बढ़ाने के लिए उन्नत सुरक्षा सुविधाओं वाले आधुनिक विमानों को अपनाते हुए अपने बेड़े का विस्तार किया है। इंडिगो एयरलाइंस एयरबस ए320नियो का संचालन करती है, जो ईंधन दक्षता और सुरक्षा उन्नयन के लिए जानी जाती है। 2016 की राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति विकास, क्षेत्रीय संपर्क और विमानन बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। उड़ान योजना ने सब्सिडी और प्रोत्साहन के माध्यम से क्षेत्रीय हवाई यात्रा को सुलभ बनाया।
बार-बार होने वाली विमानन सुरक्षा घटनाओं की चुनौतियों में रनवे भ्रम सबसे पहले है। पायलटों को अक्सर टैक्सीवे और रनवे के बीच अंतर करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिससे गलत सतहों पर टेकआॅफ या लैंडिंग होती है। मोपा घटना (2024) और सुलूर एयर बेस घटना (1993) बार-बार होने वाले रनवे भ्रम को उजागर करती हैं। उड़ान और ड्यूटी समय विनियमों के अपर्याप्त कार्यान्वयन से चालक दल थक जाता है, जिससे निर्णय लेने और परिचालन सुरक्षा से समझौता होता है। कोझिकोड दुर्घटना में पायलट थका हुआ था जिसके कारण कैप्टन पर बाद की उड़ानों को संचालित करने का दबाव था। एयरलाइंस रनवे मार्किंग और एप्रोच प्रोटोकॉल पर पर्याप्त पायलट प्रशिक्षण प्रदान करने में विफल रही, जिसके कारण बार-बार गलतियाँ हुईं। स्पाइसजेट विमान (2020) को रनवे एप्रोच तकनीकों के अज्ञान के कारण कठिन लैंडिंग का सामना करना पड़ा। नागरिक उड्डयन महानिदेशालय के आॅडिट अक्सर हवाई अड्डे के बुनियादी ढांचे और संचालन में महत्त्वपूर्ण सुरक्षा अंतराल की पहचान करने या उन्हें सम्बोधित करने में विफल रहते हैं। मुंबई और हुबली जैसे हवाई अड्डों पर ओवर रन अपर्याप्त सुरक्षा उपायों के परिणामस्वरूप हुए। आॅन-टाइम परफॉरमेंस पर अत्यधिक जोर पायलटों को सुरक्षा प्रोटोकॉल की अनदेखी करते हुए जोखिम भरे निर्णय लेने के लिए मजबूर करता है। मंगलुरु दुर्घटना (2010) दबाव के कारण हुई, जिसमें पायलट ने गो-अराउंड चेतावनियों को खारिज कर दिया।
(यह लेखिका के निजी विचार हैं।)

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