नएवर्ष की शुरुआत ठंड और शीत लहरी के साथ हो चुकी है। वैसे तो ठंड हर साल पड़ती है। इस बार भी पड़ रही है। लेकिन इस बार की ठंड में उतनी प्रबलता नहीं रही है। इस बार दिसंबर पिछले कई सालों की अपेक्षा ज्यादा गर्म रहा है। इसका कारण पिछले दिनों आए तूफान को माना जा रहा है। ऐसा बदलाव पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है। पूरी दुनिया पर ग्लोबल वार्मिंग का असर दिखाई देने लगा है।
अमेरिका, यूरोप और एशियाई देशों में ग्लोबल वार्मिंग के चलते कभी तेज आंधियां चल रही हैं, तो कभी बर्फबारी या भयंकर बारिश हो रही है। इसका प्रभाव यह हो रहा है कि अर्थ व्यवस्था पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते पारिस्थिकी तंत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। इसके चलते लोगों का विस्थापन हो रहा है। विस्थापन के चलते करोड़ों लोग प्रभावित हुए हैं। करोड़ों लोगों का जीवन स्तर बुरी तरह प्रभावित हुआ है, लोगों की नौकरियां छूट गईं, भोजन-पानी की तलाश में उनको जब इधर से उधर जाना पड़ रहा है, उन्हें जो परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं, उसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
इस बार भले ही ठंड की प्रबलता कम रही, लेकिन पिछले वर्षों की तरह प्रदूषण में कमी नहीं आई। धुंध और कोहरे की वजह से आम जनजीवन पिछले पंद्रह बीस दिनों से बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। नए साल की शुरुआत भी भयंकर कोहरे और धुंध के बीच हुआ है। प्रदूषण तो हमारे देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के राज्यों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बनता जा रहा है। सुप्रीमकोर्ट तक प्रदूषण का मामला पहुंच चुका है, लेकिन अभी तक इसका कोई सर्वमान्य और प्रभावी हल नहीं निकाला जा सका है।
प्रदूषण के चलते भारी संख्या में लोग कई तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। बच्चों और बुजुर्गों को सांस की बीमारियां हो रही हैं। यह सब कारक अर्थव्यवस्था काफी बुरा प्रभाव डालती हैं। लोगों की आर्थिक स्थिति पर भी काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गरीबी बढ़ती है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते सर्दी के दिन कम होते जा रहे हैं। आज से पांच-छह दशक पहले तक सभी ऋतुएं समान दिनों की होती थीं।
लगभग चार महीने ग्रीष्म ऋतु के होते थे। तीन महीने ही वर्षा ऋतु होती थी और तीन महीने शरद ऋतु के होते थे। इनमें भी प्रबलता नहीं होती थी। अब गर्मी भी भीषण पड़ती है। गरमी के दिनों की संख्या बढ़ती जा रही है। मार्च-अप्रैल से शुरू हुई गर्मी अब अक्टूबर-नवंबर तक पड़ने लगी है। वर्षा और शरद ऋतु के दिनों की संख्या काफी हद तक घट गई है, लेकिन प्रबलता काफी बढ़ गई है। शरद ऋतु में कुछ ही दिनों पारा कई इलाकों में माइनस में चला जाता है। ऋतुओं में पैदा हुई विषमता काफी दिक्कत पैदा करने वाली है।
-संजय मग्गू