अशोक मिश्र
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। उनके पिता मोती लाल नेहरू एक प्रसिद्ध वकील थे। नेहरू ने प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही पाई थी। जब वह पंद्रह साल के हुए, तो पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेज दिए गए। वहां जब उन्होंने देखा कि लोग कितनी स्वतंत्रता से घूमते फिरते हैं। किसी पर कोई बंधन नहीं है। ऐसी स्थिति में उन्होंने अपने देश के लोगों की तुलना की तब उनकी समझ में आया कि आजादी और गुलामी में कितना फर्क होता है। यहीं से उनके जीवन में आजादी के प्रति ललक पैदा हुई। उनके घर में कांग्रेस के नेताओं का जमावड़ा होता था क्योंकि मोती लाल नेहरू कांग्रेस के नेता थे। इसका उन पर काफी प्रभाव पड़ा। कांग्रेसी नेता और आनंद भवन के आसपास रहने वाले बच्चों से वह अंग्रेजों के अत्याचार की कथाएं वह सुनते रहते थे। इसकी वजह से उनमें अंग्रेजों के प्रति आक्रोश पनपता रहा। एक दिन जब वह स्कूल पढ़ने गए, तो उनके एक सहपाठी ने कहा कि अंग्रेज हमारे देश के किसानों पर बहुत अत्याचार करते हैं। यह सुनकर नेहरू को बहुत बुरा लगा। वह जब घर लौटे तो बहुत उदास थे। बेख्याली में वह जाकर उस जगह खड़े हो गए जिस जगह तोते का एक पिंजरा टंगा हुआ था। पिंजरे के तोते ने उन्हें देखा, तो वह बड़ी जोर से फड़फड़ाया। यह देखकर नेहरू ने सोचा कि जब आजादी हमें इतनी प्यारी है, तो इस पक्षी को भी आजादी मिलनी चाहिए। यह सोचने के बाद उन्होंने पिंजरे का दरवाजा खोला और तोते को उड़ा दिया। यह देखकर बाग के माली ने कहा कि तुम्हारे पिता बहुत नाराज होंगे। यह उनका प्रिय तोता था। तब नेहरू ने कहा कि पिता जी को बता दीजिएगा, आजादी का हक सबको है। थोड़ी दूर खड़े मोती लाल यह सुनकर गदगद हो गए।
बोधिवृक्ष : नेहरू बोले, आजादी का हक सबको है
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