प्रदेश सरकार ने पिछले बीस साल या उससे अधिक समय से सरकारी जमीन पर कब्जा जमाए बैठे लोगों को उस जमीन का मालिकाना हक देने का फैसला किया है। यह योजना कोई नई नहीं है। सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाए गए मकान, दुकान के विवादों को निपटाने के लिए एक जुलाई 2021 को मुख्यमंत्री शहरी निकाय स्वामित्व योजना शुरू की गई थी। इस योजना को शुरू करने का मकसद यह था कि जिन सरकारी जमीनों पर लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है, उस विवाद को निपटारा करने के लिए अंतत: अदालत की ही शरण में जाना पड़ता है।
अदालत की शरण में जाने पर वादी और प्रतिवादी दोनों को कई साल तक मामले को सुलझाने के लिए इंतजार करना पड़ता है। कई मामलों में अदालत में इतना लंबा समय लग जाता है कि कब्जेदार की मौत तक हो जाती है। सरकारें बदल जाती हैं और ऐसे मामलों में उनका रवैया भी बदल जाता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए, अपना और कब्जेदार का समय और धन बचाने के साथ-साथ अदालतों में मुकदमों का बोझ न बढ़ाने के लिए ही मुख्यमंत्री शहरी निकाय स्वामित्व योजना की शुरुआत की गई थी। पूरे प्रदेश में एक जुलाई 2021 से अब तक कुल एक हजार मामले ही प्रकाश में आए थे जिनमें से सिर्फ 99 मामलों का ही निस्तारण हो पाया।
बाकी 901 मामलों में अभी तक फैसला ही नहीं लिया जा सका है। जब यह योजना शुरू हुई थी, तभी मुख्यमंत्री ने प्रदेश सरकार के अधीन आने वाले सभी विभागों से ऐसे मामलों को लिए नोडल अधिकारी नियुक्त करने को कहा था। कुछ विभागों को छोड़कर बाकी सभी विभागों ने अभी तक नोडल अधिकारी की नियुक्ति तक नहीं की है। इससे मुख्यमंत्री मनोहर लाल काफी नाराज हैं। वैसे यह योजना सरकारी जमीनों पर कब्जा करने वालों के लिए काफी लाभदायक है। सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाले व्यक्ति को कलेक्टर रेट से काफी कम कीमत देनी होगी।
मालिकाना हक पाने के लिए कलेक्टर रेट पर अधिकतम 50 फीसदी तक छूट का प्रावधान है। इस मामले में शर्त यह है कि कब्जा करने वाले व्यक्ति ने मकान या दुकान को किराए पर न दिया हो। यदि कब्जा करने वाला व्यक्ति सारी योग्यताएं पूरी करता है, तो उसे एक हजार रुपये का एक मुश्त निर्धारित शुल्क भी भरना होगा। इस योजना को यदि सभी विभागों ने अच्छी तरह से लागू किया होता, तो प्रदेश के हजारों लोग अब तक अपनी मकान या दुकान के मालिक हो गए होते। लेकिन विभागीय लापरवाही के चलते हजारों लोग इस सुविधा से वंचित हो गए। हालांकि, इसका एक नकारात्मक पहलू भी है। सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों को यदि इसी तरह मालिकाना हक दिया जाता रहा, तो प्रदेश में शायद ही कोई सरकारी जमीन बिना कब्जे की मिले।
-संजय मग्गू