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सीएम मान अड़ियल रवैया, उत्तर क्षेत्रीय परिषद की बैठक बेनतीजा

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पानी अनमोल है। जरूरत पड़ने पर आदमी लाखों रुपये लिए बैठा रह जाता है और पानी का एक बूंद कई लाख रुपयों पर भारी पड़ता है। उसी पानी को लेकर देश के तीन राज्य आपस में लड़ रहे हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुए उत्तर क्षेत्रीय परिषद की बैठक में तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के पैदा हुए विवाद के चलते कोई समाधान नहीं निकल पाया।

अमित शाह ने तीनों राज्यों के बीच उपजे विवाद के समाधान के लिए एक वर्किंग कमेटी बनाने का सुझाव भी दिया ताकि वर्किंग कमेटी तीनों राज्यों के मुख्यमंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों से तालमेल करके किसी समाधान तक पहुंच सके। यह कमेटी कब बनेगी, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन एसवाईएल के मुद्दे पर जिस तरह की जिद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ठानकर बैठे हैं, उससे तो कतई नहीं लगता है कि तीनों राज्यों के बीच पैदा हुए जल विवाद का कोई हल निकल पाएगा।

उत्तर क्षेत्रीय परिषद की बैठक में मुख्यमंत्री मान ने कहा कि एसवाईएल एक संवेदनशील मुद्दा है। हमारे पास किसी दूसरे राज्य को देने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है। जहां तक एसवाईएल का सवाल है। पानी उपलब्ध न होने की वजह से इसको बनाने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता है। पानी की अनुपलब्धता के चलते राज्य की कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है। मान का यह अड़ियल रवैया जल विवाद को निकट भविष्य में कितना प्रभावित करेगा, कहा नहीं जा सकता है। उत्तर क्षेत्रीय परिषद की बैठक में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपना पक्ष भी रखा।

उन्होंने तो आंकड़ों सहित बताया कि मान का यह कहना कि पंजाब के लिए ही पानी नहीं है, झूठा है जबकि पिछले दस वर्षों में सतलुज के पानी का औसतन 1.68 मिलियन एकड़ फीट और रावी-ब्यास के पानी का 0.58 एमएएफ पाकिस्तान की ओर चला गया है। इसका कारण एसवाईएल का पूर्ण न होना है। यदि एसवाईएल बनकर तैयार होता तो हर साल इतने पानी का उपयोग हरियाणा सहित दूसरे राज्य भी कर रहे होते। उन्होंने भाखड़ा बांध और नंगल बांध का भी मुद्दा उठाया। इन दोनों के 68 साल पुराने होने की बात कहते हुए संभावित हादसे की ओर इशारा किया।

उन्होंने तो यहां तक कहा कि नदियों में पानी न होने की बात कहकर सतलुज यमुना लिंक नहर के निर्माण को रोकना उचित नहीं है। सतलुज यमुना लिंक नहर विवाद काफी पुराना है। जब से हरियाणा राज्य बना है, तब से यह विवाद चला आ रहा है। इंदिरा गांधी से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक की सरकारें इस मसले को सुलझा पाने में नाकाम रही हैं। मामला सुप्रीमकोर्ट तक गया, लेकिन कभी पंजाब अपने पक्ष पर अड़ा रहा, तो कभी हरियाणा। दोनों के अपने-अपने तर्क हैं और दावे भी। एसवाईएल का मुद्दा सुलझने का नाम नहीं ले रहा है।

संजय मग्गू

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