कन्फ्यूशियस ने कहा, मैं भी सम्राट हूं
अशोक मिश्र
पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व एशिया में तीन महान हस्तियां लोगों को सत्य, अहिंसा और सन्मार्ग पर चलने को प्रेरित कर रही थीं। भारत में स्वामी महावीर और महत्मा बुद्ध देशवासियों को मानव मात्र से प्रेम करना और आपस में मिल जुलकर रहा सिखा रहे थे। दोनों महापुरुष प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखने की प्रेरणा दे रहे थे। अहिंसा और त्याग को परम धर्म बताने वाले स्वामी महावीर और महात्मा बुद्ध एक दूसरे के समकालीन थे। कहा जाता है कि दोनों के जन्म में कुछ ही दशक का अंतर था। वहीं चीन में दार्शनिक कन्फ्यूशियस अपने दर्शन और सिद्धांत से जनता को सत्य, अहिंसा और मानव मात्र के प्रति प्रेम की शिक्षा दे रहे थे। कन्फ्यूशियस के बारे में एक कथा कही जाती है कि एक बार वे कहीं बैठे हुए थे। सामने से चीन साम्राज्य का सम्राट कहीं जा रहा था। सबने उसे अभिवादन किया, लेकिन कन्फ्यूशियस चुपचाप बैठे रहे। सम्राट ने कहा कि तुम जानते हो मैं कौन हूं। मैं सम्राट हूं। तुमने मुझे अभिवादन नहीं किया। तब कन्फ्यूशियस ने कहा कि मैं भी सम्राट हूं। तब सम्राट ने कहा कि तुम जंगल में बैठे हो और अपने को सम्राट बताते हो। मैं असली सम्राट हूं। इस बात को अच्छी तरह से दिमाग में बिठा लो। कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन संकट में पड़ जाओ। तब कन्फ्यूशियस ने कहा कि इस दुनिया में मेरा शत्रु नहीं है। इसलिए मुझे किसी सेना की जरूरत नहीं है। इस दुनिया में धन दौलत की जरूरत उन्हें होती है जो दरिद्र होते हैं। मुझे इसलिए धन-दौलत की जरूरत नहीं होती है। मैं अपनी मर्जी का मालिक हूं, इसलिए मुझे किसी के आगे सिर झुकाने की जरूरत नहीं है। मुझे कोई लोभ और मोह नहीं है, इसलिए मुझे किसी से डरने की भी जरूरत नहीं है। यह सुनकर सम्राट समझ गया कि यह कोई पहुंचा हुआ संत है। उसने कन्फ्यूशियस को अभिवादन किया और चला गया।
अशोक मिश्र