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जीती बाजी हारने में सिद्धहस्त हुई कांग्रेस

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महेन्द्र प्रसाद सिंगला
हरियाणा विधानसभा के चुनाव परिणाम घोषित हुए एक महीने से भी अधिक समय बीत चुका है। फिर भी चुनाव अभी तक सियासी गलियारों एवं मीडिया में चर्चा और वाद-विवाद का विषय बना हुआ है। यों तो चुनाव में किसी भी पार्टी की जीत-हार सामान्य बात होती है, लेकिन कुछ जीत-हार विशिष्ट और चर्चित हो जाते हैं। भाजपा-कांग्रेस की जीत-हार भी इसी श्रेणी में आती है। इस चुनाव में भाजपा-कांग्रेस की जीत-हार दोनों ही अप्रत्याशित रही हैं। जहां एक ओर चुनाव परिणामों में कांग्रेस की हार आश्चर्यजनक है, तो वहीं दूसरी ओर भाजपा की जीत भी चौंकाने वाली रही है। इन चुनाव परिणामों के संदर्भ में ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि चुनाव पूर्व राजनीतिक गलियारों में, कांग्रेस की लगभग निश्चित जीत की संभावना तथा भाजपा की लगभग निश्चित हार की आशंका व्यक्त की जा रही थी। चुनाव परिणाम राजनीतिक संभावनाओं के ही अनुरूप हों, यह जरूरी नहीं होते। वर्तमान चुनाव परिणामों से यह स्पष्ट भी हुआ है।
सत्ता विरोधी लहर पर सवार कांग्रेस उन मुद्दों पर ध्यान नहीं दे पाई जिसने कांग्रेस की जीती हुई बाजी को हार में बदल दिया। हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हवा है, कांग्रेस की आंधी है, कांग्रेस की सुनामी है, जैसी चुनावी भविष्यवाणी करने वाले भविष्यवक्ताओं ने कांग्रेस नेताओं को दिग्भ्रमित कर दिया। उन्होंने या कांग्रेस को कुछ सोचने ही नहीं दिया या उसकी सोच को कुंद कर दिया। कांग्रेस की बड़ी जीत का दावा करने वाले ऐसे सभी वक्ता, प्रवक्ता और भविष्यवक्ता चुनाव परिणामों के बाद बहुत से किंतु-परंतु से भरे अपने-अपने वक्तव्यों के साथ अब परिदृश्य से गायब हो चुके हैं।
बेशक चुनावों में कांग्रेस की बड़ी जीत की संभावना सर्वाधिक थी, जिसने उसे अति आत्मविश्वास से भर दिया था, जो बाद मे धीरे-धीरे अहंकार में परिवर्तित हो गया। इससे पार्टी जमीनी हकीकत से दूर होती चली गई। वह अपने अति आत्मविश्वास और अहंकार की चकाचौंध में पार्टी के अंतर्कलह को नहीं देख पाई। जहां भाजपा में नायब सिंह सैनी निर्विवाद रूप से भाजपा के मुख्यमंत्री पद के एकमात्र उम्मीदवार थे, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा में विवाद चरम पर और खुलेआम था। इसके अतिरिक्त भी पार्टी में अन्य नेता भी थे, जो पार्टी में असंतुष्ट थे और पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त थे, लेकिन कांग्रेस ने अति उत्साह में इनमें से किसी भी बात को तवज्जो नहीं दी।
अभी चार-छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने अति आत्मविश्वास में अबकी बार 370 और 400 पार का नारा लगाया था, जिसका विपक्ष ने, खासकर कांग्रेस ने जमकर उपहास उड़ाया था। चुनाव परिणामों में भाजपा के 240 पर सिमटने पर वह उपहास का पात्र बनी भी थीं, लेकिन फिर भी वह सरकार बनाने में सफल रही। अब हरियाणा विधान सभा चुनावों में स्वयं कांग्रेस इसी अति आत्मविश्वास और अहंकार के भंवर में फंस गई थी और जीती हुई बाजी हार गई। इससे पहले भी पार्टी पंजाब विधानसभा के चुनावों में जीत की संभावनाओं के बीच ही चुनावों में पराजित हुई थी। भाजपा का दस साल का शासन, सत्ता विरोधी लहर, सत्ता विरोध में चुनावी मुद्दों का शोर तथा कांग्रेस का आक्रामक प्रचार, ये सभी बातें प्रदेश में सत्ता-परिवर्तन की संभावना का परिदृश्य उपस्थित कर रहा थी। इससे कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार तय मानी जा रही थी। चुनाव पूर्व एवं चुनाव बाद के सर्वे भी इस बात की पुष्टि कर रहे थे। यदि परिणाम संभावनाओं के अनुरूप ही होते, तो उपरोक्त सभी बातें सत्य सिद्ध हो जातीं और उसमें कुछ आश्चर्य भी नहीं होता, लेकिन चुनाव परिणामों ने इन सभी बातों को झुठला दिया।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

महेन्द्र प्रसाद सिंगला

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