गोरखपुर के गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने को लेकर भारतीय राजनीति में विवाद सा खड़ा हो गया है। सरकार और उससे जुड़े संगठन गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने की प्रशंसा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कल गोरखपुर में गीता प्रेस को करोड़ों हिंदुओं के मंदिर के रूप में विभूषित किया है। वहीं कांग्रेस पार्टी ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने को सावरकर का सम्मान करने के समान बताकर विवाद को जन्म दिया है। गीता प्रेस की स्थापना वर्ष 1923 में हनुमान प्रसाद पोद्दार और जयदयाल गोयंदका ने की थी।
गीता प्रेस की स्थापना का उद्देश्य धर्म का प्रचार बताया गया था। इसके मुख्य उद्देश्य के बारे में कहा कि गीता प्रेस लोगों को अपनी सभ्यता और संस्कृति और धर्म अध्यात्म की जानकारी देकर उन्हें विदेशी ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में आने से बचाना है। कहा तो यह भी जाता है कि उन दिनों ईसाई मिशनरियों के षड्यंत्र के खिलाफ कई सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं का उदय और विकास हुआ था जिसमें आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, भारत साधु समाज आदि प्रमुख थे।
इन दिनों गीता प्रेस की पत्रिका कल्याण को लेकर कहा जा रहा है कि उसने उन दिनों अस्पृश्यता और सांप्रदायिकता के खिलाफ लिखे महात्मा गांधी के लेख को छापने से इनकार कर दिया था। हनुमान प्रसाद पोद्दार और जय दयाल गोयंदका का महात्मा गांधी के साथ वैचारिक मतभेद थे। वे गांधी जी की कुछ बातों पर विश्वास नहीं करते थे। अक्षय मुकुल नामक लेखक ने एक किताब लिखी है जिसका नाम है गीता प्रेस एंड द मेकिंग हिंदू आॅफ इंडिया। इसमें गीता प्रेस और महात्मा गांधी के बारे में कई तरह की बातें कही गई हैं। इन बातों में कितनी सच्चाई है, इसका पता तो इतिहासकार ही लगा सकते हैं। लेकिन जब से गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा हुई है, तब से यह पुस्तक चर्चा में है।
वैसे यह बात निर्विवाद है कि महात्मा गांधी को गीता बहुत प्रिय थी। गीता को वे हमेशा अपने पास रखते थे और जब भी मौका मिलता था, उसका अध्ययन करते रहते थे। कहा जाता है कि हनुमान प्रसाद पोद्दार पहले क्रांतिकारी संगठनों से जुड़े थे। उनका नाम कलकत्ता के रोड्डा हथियार डकैती केस में आया था। वे कुछ ही दिन जेल में रहे थे। जेल से निकले के बाद ही उन्होंने जय दयाल गोयंदका के साथ मिलकर गीता प्रेस की स्थापना की थी। जेल से निकलने के बाद ही उनका रुझान धर्म की ओर हुआ था।
ऐसा उन दिनों कहा गया था। यह भी कहा जाता है कि गांधी जी की हत्या के बाद जिनके नाम वारंट निकला था, उनमें हनुमान प्रसाद पोद्दार का भी नाम था, लेकिन बाद में साबित कुछ नहीं हो पाया था। शायद यही वजह है कि कांग्रेस को महात्मा गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस को देना रास नहीं आ रहा है। बहरहाल, गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना, एक अच्छा कदम माना जाना चाहिए क्योंकि कुछ भी हो, गीता प्रेस ने लोगों को अपनी सभ्यता-संस्कृति को जानने का मौका उपलब्ध कराया है।
संजय मग्गू