कैलाश शर्मा
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए पांच फरवरी को वोटिंग होगी और आठ फरवरी को नतीजे घोषित किए जाएंगे। इससे पहले जो दो विधानसभा चुनाव हुए उनका परिणाम एक तरफा रहा। पहले चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें प्राप्त की और तीन भाजपा को मिली। उसके बाद दूसरे विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 62 सीटें मिलीं और बीजेपी को 8 सीटें।
इस बार का चुनाव कई मायनों में अहम है।आम आदमी पार्टी इस बार तीसरी बार जीत की उम्मीद लगाए हुए है और अगर जीत दर्ज करती है तो ये तीसरी जीत यानी कि हैट्रिक होगी। वहीं कांग्रेस को भी वापसी की उम्मीद है लेकिन सबसे बड़ी चुनौती भारतीय जनता पार्टी के लिए है जो जीत के लिए पूरा दम खम लगा रही है और यह उम्मीद रख रही है कि दिल्ली में उसकी सत्ता की वापसी होगी।
दिल्ली में 1993 में बीजेपी की सरकार बनी थी और भाजपा ने मदनलाल खुराना को मुख्यमंत्री बनाया था लेकिन भाजपा के लिए जीत को आगे बरकरार रखने में बहुत मुश्किलें आईं थीं। तब बीजेपी को 49 सीटों पर बड़ी जीत मिलने के बाद भी पांच साल में तीन बार मुख्यमंत्री बदलना पड़ा था और पहले मदनलाल खुराना फिर साहिब सिंह वर्मा और फिर सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया गया था। साल 1993 के बाद फिर दिल्ली में भाजपा को कभी जीत नहीं मिली। 1998 में भाजपा ने सुषमा स्वराज के चेहरे पर चुनाव लड़ा लेकिन जनता ने 1998 में कांग्रेस की शीला दीक्षित को चुन लिया और शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और इसके बाद कांग्रेस ने 2013 तक दिल्ली की सत्ता पर कब्जा कायम रखा और शीला दीक्षित सीएम के पद पर काबिज रहीं। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया और मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। दिल्ली में 2013 के विधानसभा चुनाव में एक नई पार्टी आदमी पार्टी ने शीला दीक्षित की सत्ता छीन ली। हालांकि 70 सीटों वाली दिल्ली में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और 32 सीटें जीती लेकिन बहुमत से दूर रही। आम आदमी पार्टी को 28 और कांग्रेस को सात सीटें मिलीं थी, आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से समर्थन लेकर सरकार बनाई और पहली बार आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने।
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की सियासी दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चल सकी और 2013 में कांग्रेस के समर्थन से बनी आम आदमी पार्टी की सरकार सिर्फ 49 दिन ही टिक सकी। केजरीवाल ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लग गया। साल 2015 में दिल्ली में फिर से विधानसभा चुनाव हुए और इस चुनाव में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने रिकॉर्डतोड़ 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया और अरविंद केजरीवाल लगातार दूसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था। केजरीवाल फिर मुख्यमंत्री बने।
अब 2025 में विधानसभा चुनाव हो रहा है। प्रश्न यह है कि इस चुनाव में आम आदमी पार्टी की लगातार हैक्ट्रिक होगी या भाजपा की वापसी होगी। इस बार दिल्ली का यह चुनाव आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के लिए कड़ी परीक्षा साबित हो रहा है क्योंकि पार्टी के नेताओं पर कई तरह के आरोप लगे हैं और पार्टी इन सभी आरोपों का जवाब चुनाव के नतीजे से देने वाली है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में ‘आप’ और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है भाजपा साम दाम दंड भेद की नीति अपनाकर यह चुनाव हर हालत में जितना चाहती है। कांग्रेस भी बड़ा खेल कर सकती है। वह पूरी गंभीरता व एकजुटता से इस बार दिल्ली में चुनाव लड़ रही है। पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सबसे बुरे दौर से गुजरना पड़ा था। हमारा मानना है कि इस बार कांग्रेस की कुछ सीटें जरूर आएंगी वह सत्ता में तो नहीं आएगी लेकिन वह आप व केजरीवाल का खेल बिगाड़ सकती है। भाजपा की भी नज़र कांग्रेस के वोट बैंक पर है।
कांग्रेस के प्रदर्शन से ही आप और भाजपा का भविष्य तय होगा। 2025 के चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है। हमको लगता है कि किसी भी पार्टी को सत्ता प्राप्त करने करने के लिए स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा। कांग्रेस आम आदमी पार्टी से अपने वोट का कुछ भी हिस्सा छीनने में कामयाब रहती है तो भाजपा के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए राह आसान हो जाएगी। दिल्ली में 10 साल से ज्यादा समय से आम आदमी पार्टी की सरकार है,ऐसे में सरकार के खिलाफ भी जनता के मन में विश्वास की कमी भी एक मुद्दा है,जो वोट प्रतिशत पर असर डाल सकता है। “सबसे बड़ी बात यह है कि भाजपा का 8 सीट से बहुमत लायक 36 सीट हासिल करना और आम आदमी पार्टी का 62 सीट से 36 सीट प्राप्त करना यह दिल्ली की जनता के ऊपर निर्भर है”। भाजपा हर तरह से चुनाव जीतने का,सत्ता प्राप्त करने का हुनर रखती है। जिस पार्टी की जीत निश्चित दिखाई देती है भाजपा उसको हराकर सत्ता प्राप्त करने की कला जानती है। हरियाणा और महाराष्ट्र में उसने ऐसा करके दिखाया है। ऐसा वह अगर दिल्ली में भी करके दिखा दे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। इसमें कांग्रेस भी उसकी मदद कर रही है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हैट्रिक या बीजेपी की वापसी
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