संजय मग्गू
शुक्रवार को अमेरिका के ओवल हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, उप राष्ट्रपति जेडी वेंस और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच जो तीखी बहस हुई, उसके नतीजे भविष्य में क्या निकलेंगे, यह कह पाना बहुत मुश्किल है। लेकिन इस पूरे प्रकरण में कई पक्ष हैं। पहला अमेरिका। ट्रंप रूस-यूक्रेन युद्ध रोकना चाहते हैं, यह ओपन एजेंडा है। लेकिन छिपा एजेंडा यह है कि वह यूक्रेन के दुर्लभ खनिज को येन-केन प्रकारेण हथियाना चाहते हैं। तीन साल पहले शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जेलेंस्की और उनके देश की सहायता की थी, उसकी कीमत मांग रहे हैं ट्रंप। दूसरा पक्ष यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की और वहां की जनता है। शुक्रवार की घटना के बाद यूक्रेन की सत्ता पर काबिज ‘सर्वेंट आफ द पीपुल’ पार्टी के सांसद और देश की जनता जेलेंस्की के साथ है। तीन साल से युद्ध की विभीषिका झेल रही यूक्रेनी जनता के बीच कुछ महीनों पहले जो युद्ध को लेकर आक्रोश था। देश की हालात को लेकर जो क्षोभ था, अपनी दिक्कतों को लेकर जो हताशा थी, वह शुक्रवार की घटना के बाद लगभग खत्म हो गई है। राष्ट्रवादी भावना ने पिछली सभी भावनाओं को तिरोहित कर दिया है और अब जेलेंस्की उनके लिए एक नायक हैं जिन्होंने अमेरिका को उनके देश में करारा जवाब दिया है। लेकिन बातचीत अधूरी रह जाने के बाद जेलेंस्की अमेरिका को लेकर नरम पड़ गए हैं। वह अपने देश की दशा से पूरी तरह परिचित हैं। उनका देश किन परिस्थितियों से गुजर रहा है, वह जानते हैं। यही वजह है कि ओवल हाउस से निकलने के बाद शनिवार को उन्होंने एक के बाद एक 14 ट्वीट किया है जिसमें उन्होंने अमेरिका के अब तक के सहयोग के लिए शुक्रिया कहा है और यह भी कहा है कि वह अपने देश में स्थायी शांति के लिए खनिज डील करने को तैयार हैं। उनका यह रवैया जाहिर करता है कि वह अपने देश के लिए कितने चिंतित हैं। तीसरा पक्ष यह है कि दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप सबसे कुछ अलग ही तरीके से व्यवहार कर रहे हैं। ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने पर इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिका का दौरा किया। ह्वाइट हाउस ने बड़ी सदाशयता से व्यवहार किया। लेकिन उसके बाद अमेरिका जाने वाले जार्डन के किंग अब्दुल्ला द्वितीय, पीएम नरेंद्र मोदी, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर से ट्रंप ने उस तरह बात नहीं की जिस तरह नेतन्याहू से बात की थी। पीएम मोदी, अब्दुल्ला, मैक्रों और किएर स्टार्मर ने समझदारी का परिचय दिया और स्थिति को नाजुक होने से बचा लिया। लेकिन पिछले तीन साल से अपने देश को बरबाद और हजारों लोगों की मौत होने से हताश-निराश जेलेंस्की अपने ऊपर काबू नहीं रख पाए और ट्रंप-वेंडी से उलझ गए। अब यह तय है कि यदि ट्रंप माने भी, तो वह यूक्रेन से अपनी ही शर्तों पर डील करेंगे जो कम से कम यूक्रेन के लिए तो फायदेमंद नहीं होगा।
काश कि जेलेंस्की अपने पर थोड़ा संयम रख पाते!
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