दुनिया भर में सबसे प्रभावशाली राजनीतिक घटनाओं में से एक अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का प्रभाव न केवल घरेलू नीति बल्कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, आर्थिक स्थिरता और वैश्विक सुरक्षा पर भी पड़ता है। कई प्रभावकारी मुद्दों के निकट घूमता रहा 2024 का अमेरिकी चुनाव न केवल अमेरिकियों के लिए बल्कि दुनिया भर के लोगों को भी प्रभावित करने वाला है क्योंकि उच्च मुद्रास्फीति दर और महामारी के बाद आर्थिक सुधार की चिंताएं सभी हेतु चिंतनीय बन गया हैं। दरअसल, डोनाल्ड ट्रम्प के चुनावी वादों में मुद्रास्फीति नियंत्रण और रोजगार सृजन के साथ न केवल कर की दरों में कमी बल्कि सरकारी खर्च में कमी और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए विनियमन में ढील देना शामिल था। दूसरा उनका पूर्ववत घोषणा थी आव्रजन और सख्त सीमा नियंत्रण। इसके तहत अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर मजबूत भौतिक अवरोधों का निर्माण और प्रवर्तन को बढ़ाने, आव्रजन को राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के मामले के रूप में तैयार करने पर जोर दिया है।
प्रश्न है कि ट्रम्प के नीतियां वैश्विक जगत को प्रभावित करने वाली है कि नहीं? चीन पहले से ही अपने निर्यात के लिए अन्य बाजारों की तलाश कर रहा है, लेकिन यूरोपीय संघ में इलेक्ट्रिक वाहनों और भारत में लोहा और इस्पात जैसे अपने कई उत्पादों के लिए उसे कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। अपने पहले के कार्यकाल में ट्रंप और चीन का संबंध जग जाहिर है। भारत के लिए ट्रम्प की वापसी जेनेरिक दवाओं से लेकर आईटी सेवाओं तक कई उत्पादों को प्रभावित कर सकती है। एक प्रमुख चिंता अत्यधिक कुशल कर्मचारी या एचवन बी और एल वन वीजा कार्यक्रमों पर प्रतिबंधों की वापसी होगी। हालाँकि, भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह ट्रंप के सख्त आव्रजन नीति के साथ है। ट्रम्प ने तेल और प्राकृतिक गैस ड्रिलिंग बढ़ाने का भी वादा किया है जिसका अर्थ यह माना जाएगा कि अमेरिका एक बार फिर अपने जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों से पीछे हटने वाला है।
देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप यूरोपीय संगठन के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र के साथ कैसा व्यावहार रखते हैं। यदि यूरोपीय संघ रूसी एलएनजी पर निर्भरता से दूर जाने का प्रयास जारी रखता है, तो इससे अमेरिका को ही फायदा होने वाला है। यूरोपीय संघ में प्राकृतिक गैस आपूर्ति में अमेरिका का हिस्सा बढ़कर 46 प्रतिशत हो गया है परन्तु वर्ष 2019 और उससे पहले रूसी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत थी जो युद्ध के बाद प्रतिबंधों के कारण घटकर 2024 में 15 प्रतिशत हो गया है।
वैसे मोदी-ट्रंप की बेहतर जुगलबंदी के आधार पर यह आकलन किया जा सकता है कि रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में भारत को प्राथमिकता मिलने वाला है। बाइडेन प्रशासन से जेट इंजन के उत्पादन को सक्षम बनाने वाला जीई-एचएएल समझौता व अन्य प्रमुख सहयोगों ने भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत किया है। संभावना है कि ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल इन गठबंधनों के लिए अधिक लेन-देन वाला दृष्टिकोण ला सकता है। क्वाड अमेरिका, भारत, जापान और आॅस्ट्रेलिया को शामिल करने वाला रणनीतिक गठबंधन, ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान चीन के प्रति संतुलन के रूप में कायम किया गया था। ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में क्वाड पर और अधिक जोर देने से इंडो-पैसिफिक में स्थिरता बनाए रखने में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में भारत की भूमिका मजबूत होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। सैन्य सहयोग बढ़ाकर अमेरिका और भारत संयुक्त रूप से चीन की मुखर नीतियों का समाधान कर सकते हैं। ट्रम्प के तहत एक मजबूत यूएस-भारत आतंकवाद विरोधी साझेदारी आतंकवादी समूहों को पनाह देने वाले देशों पर कूटनीतिक दबाव डाल सकती है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)