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इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने से गति पकड़ेगी अर्थव्यवस्था

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देश के कई राज्यों पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों ने अपने यहां कई तरह की लोककल्याणकारी योजनाएं चला रखी हैं। हरियाणा में भी थारी पेंशन थारे पास योजना, पितृत्व लाभ योजना,अटल पेंशन योजना, बुढ़ापा पेंशन, विधवा पेंशन, दिव्यांग पेंशन योजना, श्रमिक पेंशन योजना, मुख्यमंत्री विवाह शगुन योजना, महिला समृद्धि योजना जैसी न जाने कितनी योजनाएं चल रही हैं।

इन योजना के मद में एक अच्छी खासी रकम खर्च करनी पड़ती है। नतीजा यह होता है कि प्रदेश सरकार के राजस्व पर हर साल बोझ बढ़ता जाता है। प्रदेश पर आंतरिक कर्ज और तमाम देनदारियां मिलाकर चार लाख करोड़ से ज्यादा का कर्जा है। मनोहर सरकार ने खुद 2023-24 के बजट में बताया कि प्रदेश पर 2,85,885 करोड़ का कर्ज है। सीएजी की रिपोर्ट में पब्लिक अकाउंड डिपोजिट, स्माल सेविंग्स, मार्च 2022 तक 36,809 करोड़ रुपये बताई गई, जोकि हर साल तीन से चार हजार करोड़ बढ़ जाती है।

पिछले साल 23 फरवरी 2023 को विधानसभा में बजट पेश करते हुए मुख्यमंत्री ने बताया था कि 2023-24 के लिए हरियाणा का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) (मौजूदा कीमतों पर) लगभग 11.2 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है जिसमें 2022-23 की तुलना में 13 प्रतिशत की वृद्धि है। 2023-24 में व्यय (ऋण चुकौतियों को छोड़कर) 1,48,730 करोड़ रुपये होने का अनुमान है जो 2022-23 के संशोधित अनुमानों से 12 प्रतिशत अधिक है। इसके अलावा 2023-24 में राज्य द्वारा 55,220 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाया जाएगा।

2023-24 के लिए प्राप्तियां (उधारियों को छोड़कर) 1,15,455 करोड़ रुपये होने का अनुमान है जिसमें 2022-23 के संशोधित अनुमान (99,745 करोड़ रुपये) की तुलना में 15 प्रतिशत की वृद्धि है। 2022-23 में बजट अनुमान (1,12,585 करोड़ रुपये) से प्राप्तियां (उधार को छोड़कर) 11 प्रतिशत कम होने का अनुमान है। यह स्थिति सिर्फ हरियाणा की ही नहीं है, बल्कि देश के ज्यादातर राज्यों की है। केंद्र सरकार की भी यही स्थिति है। असल में इन मामलों में होता यह है कि चुनावों के दौरान या चुनावों से पहले सरकारें लोगों को लुभाने के लिए कई तरह के लोकलुभावन नारे देती हैं।

सरकार बनने के बाद उन योजनाओं को लागू करना उनकी मजबूरी बन जाती है। ऐसी स्थिति में उन्हें विभिन्न वित्तीय संस्थाओं से कर्ज लेना पड़ता है। यह कर्ज तमाम विकास योजनाओं पर कई बार भारी पड़ता है। सरकारों को ढांचागत विकास के लिए पैसे जुटाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। ऐसी स्थिति में सबसे जरूरी यह है कि सुविधा के नाम पर दी जा रही तमाम सब्सिडी और लाभों में कटौती की जाए और ढांचागत विकास की ओर ध्यान दिया जाए?

-संजय मग्गू

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