डॉ. सत्यवान सौरभ
आधी रात को, जब दुनिया सोती है, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जागेगा। जवाहरलाल नेहरू का यह ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ भाषण उस सपने का प्रतीक था जिसे हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने पूरा किया था। इसने हमें भारत के लोगों द्वारा पालन किए जाने वाले अगले सपने का विजन भी दिया। भारत के बारे में गांधी का दृष्टिकोण हमारे देश के आत्मनिर्भर विकास के लिए घरेलू औद्योगीकरण को बढ़ावा देना था। उनका विचार था कि ग्रामीण भारत भारत के विकास की रीढ़ है। यदि भारत को विकास करना है, तो ग्रामीण क्षेत्र का भी समान विकास होना चाहिए। वह यह भी चाहते थे कि भारत गरीबी, बेरोजगारी, जाति, रंग पंथ, धर्म के आधार पर भेदभाव जैसी सभी सामाजिक बुराइयों से मुक्त हो। सबसे महत्वपूर्ण रूप से निचली जातियों (दलितों) के खिलाफ अस्पृश्यता को समाप्त करे जिन्हें वह ‘हरिजन’ कहते हैं।
ये दर्शन भारत के तत्कालीन समाज के सामाजिक स्तर को दशार्ते हैं। स्वतंत्रता के 75 वर्षों के बाद भी हम अभी इन सामाजिक मुद्दों को भारत में कायम पाते हैं। हमारे संविधान की प्रस्तावना भारत को संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र देश के रूप में निर्दिष्ट करती है। आइए देखें कि इस परिभाषा को सच करने के लिए हमने भारत के नागरिक के रूप में अपने सपने को कैसे पूरा किया है। सौ वर्षों के स्वतंत्रता संग्राम के बाद हम इस सपने को साकार करने में सक्षम हुए हैं। शीत युद्ध के दौर में भी जब दो महाशक्तियां अमेरिका और सोवियत संघ एक-दूसरे का मुकाबला करने के लिए गठबंधन बना रहे थे, हमने अपनी संप्रभुता को बनाए रखने के लिए किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होने के लिए गुटनिरपेक्षता का विकल्प चुना। यद्यपि संयुक्त राष्ट्र द्वारा उपनिवेशवाद पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन नव-उपनिवेशीकरण के समान अंतर्राष्ट्रीय दुनिया में अपनी जड़ें जमा रहा है।
हाल ही में हमने भारत और अन्य अविकसित देशों जैसे अमेरिका द्वारा संयुक्त राष्ट्र में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) बीजों को पेश करने और विकसित देशों से कृषि आयात के लिए बाजार को उदार बनाने के लिए दबाव बनाते देखा है। जीएम बीज कृषि का निजीकरण करते हैं और इस प्रकार मिट्टी की गुणवत्ता के साथ-साथ भारत के किसानों की सामाजिक स्थिति के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा करते हैं। भारतीय मिट्टी के अनुकूल बीजों के विकास में अनुसंधान पर अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को लगातार निशाना बनाया गया है।
भारत की संप्रभुता के लिए खतरे का अन्य उदाहरण वैश्विक आतंकवाद में है। भारत 26/11 और पठानकोट में उग्रवादियों द्वारा किए गए हमले का गवाह रहा है। बोडोलैंड की मांग के लिए असम अलगाववादी आंदोलन से भारत नक्सलियों और पूर्वोत्तर में उग्रवादियों से उग्रवादी गतिविधियों का भी सामना करता है। इन गतिविधियों से निर्दोष जीवन की हानि होती है और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचता है जिससे देश के विकास में बाधा उत्पन्न होती है। इस सपने को जिंदा रखने के लिए हमें इन गतिविधियों के खिलाफ एकता दिखानी होगी। इंटरनेट पर एकाधिकार करने के लिए फेसबुक के खिलाफ भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के फैसले का उदाहरण भारत के लोगों द्वारा मजबूत सर्वसम्मत अस्वीकृति के कारण था।
हमारे पहले प्रधान मंत्री देश की योजना और विकास में सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका के विचार के थे। उद्योगों का उदारीकरण 1991 के बाद ही हुआ, लाइसेंस राज खत्म हुआ। हाल ही में हमने भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के माध्यम से धन का प्रवाह देखा। अगर हम करीब से देखें तो हमने भारत के अधिकतम क्षेत्रों में सौ फीसदी एफडीआई नहीं खोला है। बाजार का निजीकरण निस्संदेह गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के साथ समाज में सर्वश्रेष्ठ प्रतिस्पर्धा प्रदान करता है। लेकिन अगर हम इसे अपनाते हैं, तो बाजार में केवल उन्हीं उत्पादों की आपूर्ति होगी जिनकी मांग है और जिससे वे अन्य आवश्यक आपूर्तियों की उपेक्षा करते हुए लाभ कमा सकते हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
आओ, नए वर्ष पर विकसित भारत बनाने का लें संकल्प
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