देश रोज़ाना: पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद अब तीन राज्यों में सरकार के गठन की कवायद चल रही है। इन राज्यों में हुए चुनाव के दौरान ढेर सारे वायदे किए गए। जनता ने अपनी रुचि के हिसाब से मतदान किया और किस्सा खत्म। लेकिन चुनावी घोषणाओं से राज्य की आर्थिक दशा पर क्या फर्क पड़ा या पड़ने वाला है, इसका आकलन अभी बाकी है। वैसे भारत में ही नहीं, अब अमेरिका लोगों को मुफ्त मदद देने की शुरू हो गई है। भारत में तो इसे सब्सिडी, मुफ्त की रेवड़ी आदि नाम दिया गया है, लेकिन अमेरिका में इसे मदद कहा जा रहा है। अमेरिका में मिशिगन और फ्लिंट में अगले साल से गर्भवती महिलाओं को सवा लाख रुपये दिए जाएंगे।
बच्चे के पहले साल में हर महीने चार हजार रुपये दिए जाएंगे। अमेरिकी चैरिटी संस्था गिव डायरेक्टली वर्ष 2018 से पश्चिमी केन्या के हजारों ग्रामीणों को हर महीने 1875 रुपये दे रही है। इसके पीछे भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी और अन्य शोधकर्ता हैं। ये लोग यह पता लगाने की कोशिश में हैं कि सीधा पैसा देने से ज्यादा फायदा होता है या फिर विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सब्सिडी देने से। उन्होंने पाया कि सीधा पैसा देने से लोगों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया है। भारत में ही इसकी शुरुआत पांच-छह साल पहले हो चुकी है।
आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस और दूसरे दलों की जहां-जहां राज्य सरकारें हैं, वे विभिन्न नामों से योजना चलाकर खाते में पैसे डाल रही हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि राज्य पर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है। इससे राज्यों पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। आंध्र प्रदेश की बात करें, तो सिर्फ पिछले दो साल में ही सब्सिडी के नाम पर चार गुना बोझ बढ़ गया है, इसके बाद पंजाब का नंबर है। यहां दो साल में दो गुना बोझ बढ़ा है।
पंजाब में इस साल सबसे ज्यादा 7428 रुपये प्रति व्यक्ति सब्सिडी दी गई। इसके बाद कर्नाटक में 4274 रुपये, गुजरात में 4272 रुपये, महाराष्ट्र में 3849 रुपये प्रति व्यक्ति सब्सिडी दी गई। राज्यों में ओडिसा और मध्य प्रदेश ने सब्सिडी काफी कम कर दी है। केरल अपने लोगों को सबसे कम 462 रुपये सब्सिडी देता है। सब्सिडी और खातों में पैसे ट्रांसफर करने के आत्मघाती चलन ने राज्यों पर कर्ज का पहाड़ लाद दिया है। मध्य प्रदेश पर 3.85 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। अभी चुनाव हुए हैं। सरकार बनेगी, तो उस पर चुनावी वायदे पूरे करने का दबाव होगा। कर्ज और बढ़ेगा। छत्तीसगढ़ पर 83 हजार करोड़ का कर्ज है। कमाई के ज्यादा कर्ज (110 प्रतिशत) है।
राजस्थान पर 5.37 लाख करोड़ रुपये का बोझ है। हर साल 18 से 20 प्रतिशत कर्ज बढ़ रहा है। तेलंगाना को सब्सिडी हर साल 2.56 लाख करोड़ रुपये जुटाने होंगे, तभी बेड़ा पार लगेगा। पिछली सरकार का ही 4.26 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बाकी है। यही हाल देश के दूसरे राज्यों का है। सभी प्रदेशों के मुखिया इस मामले में चार्वाकवादी हो गए हैं। कर्ज लो, चुनावी वायदे निभाओ और फिर कर्ज लेकर किस्त चुकाओ।
– संजय मग्गू