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महंगी होती शिक्षा और पढ़ाई को बीच में ही छोड़ते छात्र

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उच्च शिक्षा संस्थानों में आत्महत्या की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। आईआईटी, आईआईएम जैसे संस्थानों के कुछ प्रतिशत छात्र-छात्राएं या तो आत्महत्या कर रहे हैं या फिर बीच में ही पढ़ाई छोड़ रहे हैं। इंजीनियरिंग, मेडिकल, कॉमर्स जैसे मुश्किल इंट्रेंस एक्जाम पास करने वाले युवा आखिर बीच में ही पढ़ाई क्यों छोड़ रहे हैं? वे कौन से दबाव हैं जिसकी वजह से वे आत्महत्या कर रहे हैं? यह केंद्र और राज्यों की सरकारों से लेकर शिक्षाविदों की चिंता का कारण बनता जा रहा है। अभी हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने राज्यसभा में आंकड़े पेश करते हुए बताया कि पिछले पांच सालों में 33,111 छात्रों ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी है।

इनमें से 15,657 इंजीनियरिंग संस्थानों से हैं। आईआईटी छोड़ने वालों की संख्या 8139 है। इस मामले के विशेषज्ञ मानते हैं कि इंजीनियरिंग तकनीकी विषय है। माता-पिता और समाज के दबाव में कई बच्चे सबसे कठिन माने जाने वाले इंट्रेंस एक्जाम को तो पास कर लेते हैं, लेकिन बाद में वे तकनीकी विषय के साथ अपना तालमेल नहीं बैठा पाते हैं। जिसकी वजह से या तो आत्महत्या कर लेते हैं या फिर बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। आत्महत्या करने या बीच में ही पढ़ाई छोड़ने का एक कारण दिनोंदिन महंगी होती जा रही उच्च शिक्षा है। कई परिवार जोश में अपने बच्चों का एडमिशन तो इन स्कूलों में करा देत हैं, लेकिन बाद में फीस आदि जमा करने और बच्चे की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते हैं जिसकी वजह छात्र ऐसा कदम उठाते हैं।

महंगी होती शिक्षा आम निम्न-मध्यमवर्गीय और वर्किंग क्लास परिवारों के पहुंच से बाहर होती जा रही है। यहां तक कि सरकारी आईआईटी और आईआईएम की फीस आसमान छू रही है। इससे प्राइवेट यूनिवर्सिटी और संस्थानों की फीस का अंदाजा लगाया जा सकता है। आईआईएम (अहमदाबाद) की फीस वर्ष 2007 से 2022 के बीच 15 सालों में चार लाख रुपये सालाना से बढ़कर 27 लाख रुपये सालाना पहुंच गई है जोकि 575 प्रतिशत की बढ़ोतरी है। देश के प्रमुख चार आईआईएम की सालाना औसत फीस 25 लाख रुपये से ज्यादा है जबकि आईआईटी के मैनेजमेंट स्कूल्स की सालाना औसत फीस 12 लाख रुपये से ज्यादा है।

कहने की जरूरत नहीं है कि जब सरकारी इंजीनियरिंग और प्रबंधन और दूसरे प्रोफेशनल डिग्री/पीजी डिप्लोमा संस्थानों की फीस इतनी ज्यादा हो गई है तो प्राइवेट संस्थानों की फीस का कहना ही क्या? उदाहरण के लिए, सरकारी नेशनल ला स्कूल यूनिवर्सिटी, बैंगलोर की सालाना फीस 3.2 लाख रुपये (हॉस्टल/मेस सहित) है तो प्राइवेट क्षेत्र के जिंदल लॉ स्कूल की सालाना फीस 8.92 लाख रुपये और सिम्बायोसिस लॉ स्कूल की सालाना फीस 6.2 लाख है। सवाल यह है कि यह फीस कितने गरीब, वर्किंग क्लास और निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार चुका पाएंगे? सरकार भी इस मामले में कुछ कर पाने में अपने को असहाय महसूस कर रही है। केंद्र और राज्य सरकारों को इस पर तुरंत ध्यान देना चाहिए।

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