यह बात मौजूदा दौर में कहीं अधिक तार्किक हो चली है कि प्रतियोगी परीक्षा में बिना कोचिंग के सफल होना संभव नहीं है। इसमें सबसे बड़ी समस्या शुल्क की रहती है। जाहिर है कि सिविल सेवा या पीसीएस जैसी परीक्षाओं की तैयारी में छात्र को भारी-भरकम शुल्क से गुजरना पड़ता है। ऐसे में कई बेहतर प्रतिभा के बावजूद एक सफल सिविल सेवक बनने से वंचित रह जाता है। दिल्ली, प्रयागराज, जयपुर, लखनऊ, पटना और कोटा समेत देश के कई ऐसे चर्चित स्थल है, जहां प्रतियोगियों का जमावड़ा लगता है। ऐसी तमाम स्थितियों को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मुख्यमंत्री अभ्युदय योजना 2023 के माध्यम से नि:शुल्क कोचिंग का प्रावधान करके कोचिंग व्यवस्था का न केवल विकेंद्रीकरण किया है, बल्कि अभाव से जूझते वर्ग विशेष को उनके इर्द-गिर्द ही ऐसी सुविधा दी जा रही है।
प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिहाज से यह समझना जरूरी है कि अभ्यर्थी तय मानकों में अपने व्यक्तित्व को अपने संघर्ष से निखारता है। अलबत्ता कई बार संघर्ष लंबा खिंचता है और असफलता की मनोदशा गहराने लगती है। सिविल सेवा एक ऐसी प्रतियोगिता है, जहां एक-दो बार असफल होना आम बात है। पर इसी को बेहतर व्यक्तित्व के प्रारूप में ढाल दिया जाए तो न केवल अनिश्चितता से बचा जा सकता है, बल्कि सफलता तक पहुंचने की कला भी सीखी जा सकती है। उत्तर प्रदेश में अभ्युदय योजना को मूर्त रूप देते समय इस बात का भरसक ध्यान रखा गया है कि प्रतियोगी छात्र सफलता के लिए धैर्यपूर्वक तैयारी में जुटे और साथ ही उसके व्यक्तित्व में भी एक मजबूती आए। व्यक्तित्व एक मनुष्य के जीवन से जुड़ी एक सामासिक अवधारणा है। इसमें निहित संदर्भ केवल बाहरी आवरण ही नहीं, बल्कि मन में निहित उन दृष्टिकोणों का भी आभास है जिसके चलते किसी को सराहा जाता है।
व्यक्तित्व में बेहतर ज्ञान और सामयिक सरोकारों का तार्किक विनियोग जरूरी है। आम राय यह रही है कि किसी कार्य के असफल होने में भाग्य का प्रतिकूल होना है। इस ओर ध्यान कम ही दिया जाता है कि व्यक्तित्व में कमी के कारण सफलता मुमकिन ही है। यूपी सरकार जिस मनोयोग से अभ्युदय योजना से प्रतियोगियों को संवारने का जिम्मा उठाना रही है, उनमें इन बातों पर बल देना ठीक रहेगा। प्रतियोगिता चाहे सिविल सेवा की हो या फिर करियर के किसी और दिशा से ही संबंधित क्यों न हो। अच्छे इंसान और अच्छे व्यक्तित्व की कसौटी सभी की दरकार है। समाज में सत्यनिष्ठा के साथ जिम्मेदारी का निर्वहन करना, चुनौतियों के अनुपात में स्वयं को तैयार करना और यह तय करना कि हम जो करने जा रहे हैं, उसके प्रति हमारी निष्ठा और समर्पण भी उतना श्रेष्ठ है, ये कुछ जरूरी कसौटियां हैं। हमें इन कसौटियों पर खरा उतारने वाली शिक्षण व्यवस्था की दरकार है। ध्यान रहे कि इस दरकार की अवहेलना से समय और धन का निवेश होने के बावजूद मन माफिक सफलता संभव नहीं हो पाती।
अनुभव से भी यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक प्रतियोगिता की अपनी एक मांग है, जिसे शिक्षण और प्रशिक्षण के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। व्यक्तित्व के मामले में कुछ तो ह्यग्रेट मैन थ्योरीह्ण में आते हैं, जिनमें ऐसे मौलिक भावों का पैदा होना स्वाभाविक है। पर जिनमें ये लक्षण नहीं हैं उन्हें प्रशिक्षित करके उम्दा बनाया जा सकता है। सरकार को यह भी समझना होगा कि व्यक्तित्व निर्माण एक सांख्यिकीय चेतना न होकर यांत्रिक चेतना बने। इसके कुछ उपकरण होते हैं जिसे समय और परिस्थिति के अनुपात में अनुप्रयोग करके बेहतर व्यक्तित्व को प्राप्त किया जा सकता है और इसकी खामी को उत्कृष्टता से भरा जा सकता है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-डॉ. सुशील कुमार सिंह