कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो की सफल यात्रा के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक बार फिर ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ को लेकर सड़कों पर उतर चुके हैं। कार्यक्रमानुसार यह ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ लगभग 66 दिनों तक चलती हुई देश के 15 राज्यों और 110 जिलों से होकर गुजरेगी। 20 मार्च को मुंबई में खत्म होने वाली यह यात्रा 337 विधानसभा व सौ लोकसभा सीटों से होकर गुजरेगी। 14 जनवरी को राहुल गांधी द्वारा मणिपुर के थौबल से शुरू की गयी यात्रा मणिपुर के बाद नगालैंड, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात से होते हुए (मुंबई) महाराष्ट्र में समाप्त होगी।
‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ पार्ट 2 को पहले से भी अधिक जनसमर्थन मिल रहा है। जगह जगह लोगों की भारी भीड़ राहुल गाँधी को सुनने व देखने के लिए उमड़ रही है। परन्तु देश का मीडिया राहुल गाँधी की यात्रा को कोई महत्व नहीं दे रहा। मीडिया तो सत्ता के सुर से अपना सुर मिलाते हुए देश को केवल यह बताने में व्यस्त है कि देश में ‘राम राज’ आ चुका है।
‘भारत जोड़ो यात्रा’ पार्ट 1 और पार्ट 2 में एक और बहुत बड़ा अंतर देखने को मिल रहा है। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पार्ट 1 के समय जब राहुल गांधी ने 7 सितंबर 2022 से 30 जनवरी 2023 तक 145 दिनों की कन्याकुमारी से जम्मू-कश्मीर तक की यात्रा करते हुए 3570 किमी के सफर में 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों को कवर किया था।
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उस समय किसी भी पक्ष या विपक्ष के सत्तासीन राज्य से गुजरते वक़्त इस स्तर के शासकीय विरोध का सामना नहीं करना पड़ा था जितना इस बार उन्हें ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के शुरुआती दौर में ही भाजपा शासित असम राज्य में करना पड़ा। असम में राहुल गाँधी की यात्रा रोकने, बाधित करने व उनके साथियों को हतोत्साहित करने के लिए असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने अपना पूरा जोर लगा दिया। राजनीति में ऐसा विरोध राजनीतिक कम व्यक्तिगत रंजिश जैसा अधिक प्रतीत होता है? हिमंता बिस्वा सरमा ने राजनीति का कखग कांग्रेस में ही रह कर सीखा है। सरमा के कांग्रेस में रहते हुए भाजपा इन्हें देश का सबसे भ्रष्ट कांग्रेस नेता बताया करती थी। कुछ अजित पवार की ही तरह।
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने 19 जनवरी को यहां कह दिया था कि कांग्रेस की न्याय यात्रा को न तो सुरक्षा दी जाएगी, न ही यह यात्रा शहर से होकर गुजरने दी जाएगी। 20 जनवरी को कांग्रेस के काफिले पर हमला किया गया। भाजपा के कुछ कार्यकर्ता अपनी पार्टी के झंडे लेकर राहुल की बस के सामने आ गए। राहुल भी बस से बाहर निकल पड़े। कांग्रेस ने इस हमले का आरोप भाजपा पर लगाया है। कांग्रेस के अनुसार-‘ भाजपा के गुंडों ने पोस्टर-बैनर फाड़े, गाड़ियों में तोड़फोड़ की। यह लोग यात्रा को मिल रहे समर्थन से घबरा गए हैं। इसी तरह राहुल गांधी को असम के एक विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित करने के लिए प्रवेश नहीं करने दिया गया। आखिरकार 23 जनवरी को यात्रा के 10वें दिन राहुल गांधी ने विश्वविद्यालय के छात्रों से असम-मेघालय सीमा पर सड़क पर बातचीत की और कहा- कि मैं आपकी यूनिवर्सिटी आकर आपसे बात करना चाहता था और ये समझना चाहता था कि आप किन मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
इसके बाद जब राहुल गांधी की न्याय यात्रा गुवाहाटी पहुंची तो असम पुलिस ने गुवाहाटी सिटी जाने वाली सड़क पर बैरिकेडिंग लगाकर यात्रा को रोक दिया। यहां कांग्रेस समर्थकों के साथ पुलिस की भिड़ंत व धक्का मुक्की हुई। भीड़ ने बैरिकेडिंग तोड़ डाली। इसके बाद राहुल गांधी सहित अन्य कई नेताओं के विरुद्ध पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी। इस संबंध में मुख्यमंत्री सरमा ने कहा कि 2024 लोकसभा चुनाव के बाद हम राहुल गांधी को गिरफ़्तार करेंगे। सवाल यह है कि क्या राजनीतिक विरोध अब निजी शत्रुता जैसा रूप ले चुका है? राजनीतिज्ञों के लिये डॉ. बशीर बद्र का एक शेर बहुत प्रासंगिक लगता है।
दुश्मनी जमकर करो मगर ये गुंजाइश रहे।
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों।।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-तनवीर जाफरी
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