प्रदूषण एक ऐसी समस्या है जिससे पूरा विश्व जूझ रहा है। चीन, अमेरिका, भारत सहित कई देश प्रदूषण की वजह से करार रहे हैं। चीन और भारत में यह समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। कहीं जल प्रदूषण विकराल रूप धारण करता जा रहा है, तो कहीं ध्वनि प्रदूषण। वायु प्रदूषण ने तो लोगों का जीना ही हराम कर रखा है। चीन और भारत इस समस्या से पिछले कई दशक से जूझ रहे हैं। चीन के शंघाई और बीजिंग जैसे शहर, तो हमारे देश में दिल्ली-एनसीआर, पंजाब हरियाणा जैसे राज्य दमघोटू साबित हो रहे हैं। अब सर्दियों की कौन कहे, बाकी मौसमों में भी जीवन दुश्वार होता जा रहा है।
पिछले कुछ वर्षों से दिल्ली-एनसीआर में बिगड़ते हालात की वजह से सुप्रीमकोर्ट तक हस्तक्षेप करना पड़ा है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण यानी एनजीटी ने भी कुछ उद्योगों पर प्रतिबंध लगाया है ताकि प्रदूषण की समस्या को कम किया जा सके। पिछले दिनों एनजीटी ने व्यवस्था दी थी कि एनसीआर में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए डीजल वाहनों को दिल्ली के आसपास किसी अन्य आईसीडी (इनलैंड कंटेनर डिपो) की ओर मोड़ दिया जाए। एनजीटी के इस आदेश का मंतव्य यह था कि इन डीजल वाहनों के चलते दूसरी जगह भले ही प्रदूषित हो जाए, लेकिन एनसीआर में प्रदूषण न हो।
एनजीटी ने यह जानबूझकर फैसला नहीं दिया था, लेकिन इस पक्ष की ओर उसका ध्यान नहीं गया था। ऐसा माना जा सकता है। हालांकि सुप्रीमकोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि एनसीआर के अलावा देश के अन्य हिस्सों के नागरिकों को भी प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का हक है जिसकी गारंटी संविधान के अनुच्छेद 21 में दी गई है। सिर्फ दिल्ली और एनसीआर के इलाके ही प्रदूषण मुक्त रहें, बाकी देश के हिस्से प्रदूषित रहें, यह देश के नागरिकों के साथ अन्याय होगा।
जीवन जीने का हक तो दुनिया के देशों में लागू हर संविधान देता है। बच्चे को जन्म देने वाले माता-पिता अपने बच्चे से जीने का हक नहीं छीन सकते हैं। बच्चे को जन्म देने का फैसला भले ही मां-बाप लेते हों, लेकिन जैसे ही गर्भ एक निश्चित समय बाद उस गर्भस्थ शिशु को मारने का हक समाज और संविधान छीन लेता है। ठीक इसी तरह देश के किसी भी हिस्से में रहने वाले हर नागरिक को स्वस्थ और प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का हक हासिल है। अब सवाल यह है कि ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? हम सभी नागरिक ऐसी परिस्थितियों के लिए एकमात्र जिम्मेदार हैं। सरकार और न्यायालय के नियमों और निर्देशों की अनदेखी के चलते ही ऐसी समस्या हमारे सामने पैदा हुई है। यह हमारी ही गलतियों का नतीजा है। हमें ही सामूहिक रूप से प्रदूषण से निपटना होगा। सरकार नियम बना सकती है, संसाधन जुटा सकती है, लेकिन इसे कार्यरूप में लागू हमें ही करना होगा।
-संजय मग्गू