कुछ ही दिन के अंतराल में आए दो बजटीय प्रस्ताव देश में राजस्व और विकास के बीच प्राथमिकताओं की एक नई अवधारणा से जुड़ी है। यह अवधारणा विकास और सुशासन के साझे को मुकम्मल तो करता ही है, इससे विकास का आगे का रोडमैप भी स्पष्ट होता है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं केंद्र सरकार के अंतरिम और उत्तर प्रदेश सरकार के प्रस्तुत बजट की। अंतरिम बजट होने के कारण केंद्र सरकार ने कोई बड़ी योजनागत घोषणा तो नहीं की, पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गरीब, युवा, अन्नदाता किसान और नारी सशक्तिकरण की प्राथमिकता को जरूर सामने रखा। यह प्राथमिकता अहम इसलिए है क्योंकि यह ज्ञान के नाम से चर्चा में आई नई अवधारणा को सामने रखती है।
बात करें उत्तर प्रदेश की, तो इस मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार की प्राथमिकता को इस अवधारणात्मक धुरी पर पहले से कसना शुरू कर दिया था। प्रदेश सरकार के आठवें बजट में वित्तमंत्री सुरेश खन्ना ने गरीब, युवा, अन्नदाता, नारी यानी ज्ञान पर फोकस रखा। इस बजट की सबसे अच्छी बात है कि सरकार ने राजकोषीय घाटे को कम रखा है और बेरोजगारी की दर उत्तर प्रदेश में कम हुई है। आर्थिक विशेषज्ञों ने देश के सबसे बड़े सूबे के बजट में आस्था के साथ आजीविका और विकास के समावेशी पहलू को भी महत्वपूर्ण माना है।
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समावेशी ढांचे से युक्त साल 2024-25 के केंद्र सरकार के अंतरिम बजट की कसावट यह दिखाती है कि सुशासन के आवश्यक पहलू को इसमें समेटा गया है। अंतरिम बजट को कुछ हद तक आर्थिक घोषणा पत्र के तौर पर देखा जा सकता है, मगर चुनावी बजट की अवधारणा से यह काफी अलग है। बावजूद इसके वर्ग विशेष को विशेष राहत देकर साधने का कुछ हद तक प्रयास भी किया गया है। इसी वर्ष के अप्रैल और मई के महीने में 18वीं लोकसभा का गठन होना है। हालांकि बजट में लोक लुभावन दृष्टिकोण का काफी हद तक का अभाव दिखता है। राजकोषीय घाटा में तुलनात्मक कमी मगर आयकर स्लैब को जस का तस बनाए रखा गया है। साथ ही भविष्य की योजना के साथ बाजार और वित्तीय व्यवहार की भी संकेत इस बजट में साफ झलकता है।
महिला, किसान, गरीब और युवा सशक्तिकरण पर बजट में जोर है और इन्हें यहां चार जातियों में उल्लेखित किया गया है। यह अवधारणा लोक सशक्तिकरण को बढ़त दिलाने में कारगर सिद्ध हो सकती है और सुशासन का यह एक परिलक्षित स्वरूप भी है। इतना ही नहीं, लखपति दीदी योजना के तहत तीन करोड़ से अधिक महिलाओं को लखपति बनाने का जहां लक्ष्य है, वही किसान सम्मान निधि योजना में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी व मनरेगा पर 86 हजार करोड़ रुपये का आवंटन किसान और ग्रामीण रोजगार दोनों को मजबूती दे सकता है।
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गौरतलब है कि सुशासन में लोक कल्याण और संवेदनशील शासन के साथ पारदर्शी व्यवस्था का होना आपरिहार्य है। जाहिर है अंतिरम बजट कई सामवेशी प्रारूप में विस्तार लेकर सुशासन को बड़ी जगह देता है। राजकोषीय घाटा में तुलनात्मक गिरावट अर्थिक विकास के लक्ष्य को कही अधिक सघन बना सकता है। फिलहाल किसानों के आय बढ़ाने और गांव को संवारने के राजनीतिक संतुलन से युक्त यह अंतरिम बजट ग्रामीण सुशासन की दृश्टि से भी महत्वपूर्ण करार दिया जा सकता है। अंतरिम बजट होने के कारण आयकर में कोई संशोधन सरकार की तरफ से प्रस्तावित नहीं है। यह आठ करोड़ से अधिक आयकर दाताओं को थोड़ा निराश भले करे, पर सामवेशी और सतत विकास की अवधारणा के साथ विकसित भारत की परिकल्पना उन्हें नए विश्वास से भी भरा होगा।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-डॉ. सुशील कुमार सिंह
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