संजय मग्गू
भारत की आबादी लगभग डेढ़ अरब हो गई है। दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाले देश में यदि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत तीन बच्चे पैदा करने की अपील करें, तो चौंकना स्वाभाविक है। उनका कहना है कि जनसंख्या विज्ञान के अनुसार, जब दर 2.1 से नीचे गिरती है, समाज खुद-ब-खुद खत्म हो जाता है। उसे कोई नष्ट नहीं करता। अब यह कहने के पीछे उनका क्या मंतव्य है, जगजाहिर है। लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत में सन 1950 में प्रति महिला 5.7 रही प्रजनन दर अब दो पर आकर सिमट गई है। 29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से 17 की प्रजनन दर दो से भी नीचे चली गई है। दक्षिण भारत के पांच राज्यों में महिलाओं की प्रजनन दर 1.6 से नीचे है। कर्नाटक की प्रजनन दर 1.6 और तमिलनाडु की 1.4 है। यह प्रजनन दर यूरोपीय देशों के या तो बराबर है या उससे थोड़ा कम है। लेकिन इन यूरोपीय देशों के किसी भी नेता ने समाज के खुद खत्म हो जाने की आशंका नहीं व्यक्त की। कार्यबल की दिक्कतें इन देशों में भी हैं, लेकिन इन देशों में एक बहुत अच्छी बात यह है कि यहां की बूढ़ी आबादी को अच्छी देखभाल, स्वास्थ्य सुविधाएं, सरकारी सुविधाएं मिल रही हैं। लेकिन हमारे देश में स्थिति इसके बिल्कुल उलट है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की ताजा इंडिया एजिंग रिपोर्ट के अनुसार, 40 प्रतिशत से अधिक बुजुर्ग भारतीय (60+ साल) धन वितरण के मामले में आबादी के निचले 20 प्रतिशत में आते हैं। भारत के संदर्भ में सबसे ज्यादा डराने वाली बात यह है कि हमारे देश की एक बहुत बड़ी आबादी बूढ़ी हो रही है। किसी देश की प्रजनन दर 2.1 बताती है कि उस देश की आबादी एकाध दशक में स्थिर होने वाली है। भारत भी आबादी की स्थिरता के दौर से गुजर रहा है। भारत की जो आबादी बूढ़ी हो रही है या एकाध दशक में बूढ़ी होने वाली है, उसकी आर्थिक दशा सबसे खराब रहने वाली है। हमारे देश की एक बड़ी आबादी ऐसी है जो सिर्फ खाने और अपनी जरूरत भर की ही आय वाली है। वह जो भी कमाती है, वह खाने-पीने, दवाओं, बच्चों की पढ़ाई लिखाई और मकान के किराये में खर्च हो जाती है। बचत के नाम पर वह ठनठन गोपाल है यानी शून्य बचत। यूरोप और अमेरिका में बुजुर्गों की स्थिति हमारे देश के मुकाबले कई गुना बेहतर है। आंध्र प्रदेश का ही उदाहरण लीजिए। इसकी प्रजनन दर 1.5 है जो स्वीडन के बराबर है, लेकिन आंध्र प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय स्वीडन से 28 गुना कम है। यह सच है कि प्रजनन दर को थोड़ा सा बढ़ाने की जरूरत है, लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि बुजुर्ग होती आबादी का हर तरह से ख्याल रखा जाए, इसके लिए एक बड़े निवेश की जरूरत है। करीब तीन-चार दशक पहले वाली स्थिति होती, तो बुजुर्गों को लेकर इतनी चिंता नहीं करनी पड़ी क्योंकि संयुक्त परिवार में बुजुर्गों की देखभाल, उपचार और भावनात्मक संबल मिल जाता था जिससे बुजुर्ग कुछ दिन और जिंदा रह जाते थे। संयुक्त परिवार ही भारत की पहचान हुआ करता था, लेकिन एकल परिवार के चलन ने सारा समीकरण गड़बड़ा दिया है। बेसहारा और धनहीन बुजुर्ग आखिर अपने जीवन आखिरी पड़ाव कैसे पार करेंगे?
अधिक बच्चे पैदा कर लें, बुजुर्गों का खयाल कौन रखेगा?
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