बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
महात्मा बुद्ध ने जीवन भर लोगों को सत्य, अहिंसा और परोपकार करने का संदेश दिया। वह भविष्य के लिए संचय करने के विरोधी नहीं थे, लेकिन आवश्यकता से अधिक संचय का उन्होंने कभी समर्थन नहीं किया। वह इस बात को अच्छी तरह समझ गए थे कि आवश्यकता से अधिक धन, संपत्ति और इच्छाएं ही समस्याओं की जड़ में हैं। कहते हैं कि तथागत गौतम बुद्ध का जब अंतिम समय निकट आया, तो उनके ढेर सारे शिष्य और समर्थक वहां जमा हो गए। सभी दुखी थे। कुछ लोग धीरे-धीरे सुबक रहे थे। उनमें महात्मा बुद्ध का एक अन्यय भक्त भद्रक भी था। वह महात्मा बुद्ध के विछोह को सहन नहीं कर पा रहा था। जब उससे बरदाश्त नहीं हुआ, तो वह बड़ी तेज स्वर में रोने लगा। उसके रोने की आवाज महात्मा बुद्ध के कानों में पड़ी। उन्होंने बहुत धीमे स्वर में पूछा, आनंद! यह कौन रो रहा है? आनंद ने जवाब दिया, भंते! भद्रक रो रहा है। महात्मा बुद्ध ने भद्रक को अपने पास बुलाया और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा कि क्यों रो रहे हो, भद्रक! यह सुनकर भद्रक बिलख उठा। उसने रोते हुए कहा कि भंते! जब आप नहीं रहेंगे, तो हमें राह कौन दिखाएगा? यह सुनकर महात्मा बुद्ध ने कहा कि भद्रक! अप्प दीपो भव। अपना प्रकाश खुद बनो। किसी दूसरे के सहारे क्यों रहते हो? प्रकाश तो तुम्हारे भीतर विराजमान है, तुम बाहर किस प्रकाश की खोज कर रहे हो? देवालयों, तीर्थस्थानों, कंदराओं में देवता या आत्मज्ञान नहीं मिलता। जो मन, वाणी और कर्म से एकनिष्ठ होकर चिंतन मनन में लगे रहते हैं, उनके भीतर स्वयं प्रकाश प्रस्फुटित हो जाता है। कहते हैं कि भद्रक को दिया गया यह उपदेश महात्मा बुद्ध के जीवन का अंतिम उपदेश था। इसके बाद बुद्ध चिरनिद्रा में विलीन हो गए।
बुद्ध बोले, अपना प्रकाश खुद बनो
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