चुनाव में टिकट किसी एक को मिलेगा। जीतेगा एक पक्ष, बाकी हारेंगे ही। हर पार्टी की टिकट देने की अपनी -अपनी रणनाीति है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में होने जा रहे चुनाव में बीजेपी अपना चोला बदल रही है। रणनीति बदल दी है। उसका अपना-अपना एजेंडा हैं। होना भी चाहिए। सांसदों को टिकट दिया गया है।
केन्द्रीय मंत्रियों को टिकट दिया गया है। हो सकता है कई मंत्री और विधायकों को टिकट न भी मिले। अभी तक मध्यप्रदेश की जारी 78 उम्मीदवारों की सूची में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम नहीं है। इसके पीछे पार्टी की अपनी सियासी वजह है। यह माना जा रहा है, तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री रहे चेहरे को पार्टी टिकट नहीं देगी।
भगवा छत्तरी के नीचे क्या हो रहा है, उसे लेकर कांग्रेस खेमे खलबली है। मध्यप्रदेश में बीजेपी की दूसरी सूची जारी होने पर विपक्ष ने आकलन करना शुरू कर दिया। करना भी चाहिए। जिस तरह वह प्रचार कर रहा है। वह हैरानी वाला है। कांग्रेस कह रही है कि बीजेपी डरी हुई है।
इसीलिए उसने तीन केन्द्रीय मंत्रियों सहित चार सांसदों को टिकट दिया है। क्या विपक्ष के प्रचार का सच यही है या फिर मोदी की रणनीति कुछ और है? केन्द्रीय मंत्रियों को विधान सभा चुनाव बीजेपी हाईकमान लड़ा रहा है, तो इसके पीछे वजह भी है। पहला यह कि चार बार के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी की 18 साल की सत्ता के एंटी इन्कम्बैसी की तपिश कम करने के लिए मोदी ने ऐसा किया है।
दूसरा शिवराज सिंह चौहान को अप्रत्यक्ष रूप से यह बता दिया गया कि सीएम की कुर्सी के स्वयंवर के लिए हमने उम्मीदवार उतार दिये हैं। जो जीत कर आएगा,उन्हीं में से किसी को कुर्सी मिलेगी।
केन्द्रीय गृहमंत्री प्रहलाद पटेल पहली बार विधान सभा चुनाव लड़ेंगे। कैलाश विजयवर्गीय बीजेपी महासचिव हैं। दस साल बाद मध्यप्रदेश की सियासत का स्वाद चखेंगे। इनका कहना है कि लड़ने की इच्छा नहीं थी। अब बड़े नेता हो गए हैं। कहां हाथ जोड़ने जाएंगे। फग्गन सिंह कुलस्ते छह बार लोकसभा और एक दफा राज्य सभा सांसद रह चुके हैं।
मंडला सीट से सांसद हैं। नरेन्द्र सिंह तोमर तीन दफा लोकसभा सांसद रह चुके हैं। दो बार विधायक भी। चुनाव प्रबंधन समिति के अघ्यक्ष हैं। जबलपुर के सांसद राकेश सिंह,सीधी की सांसद रीति पाठक,सतना सांसद गणेश सिंह और होशंगाबाद सांसद उदय प्रताप सिंह। बड़े नेताओ के दम पर बीजेपी चुनाव जीतना चाहती है।
ऐसा लगता है बीजेपी हाईकमान कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की चुनाव हार के बाद गुजरात मॉडल पर चुनाव लड़ना चाहती है। आने वाले सूची में कई मंत्रियों के टिकट कट सकते हैं। कई विधायकों को भी। कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रियों और अफसरों से बड़े बुझे मन से थैक्यू वेरी मच कहा। बात साफ है, कि पार्टी हाईकमान शिवराज को टिकट नहीं देना चाहती। मोदी ने शिवराज की एक तरीके से घेराबंदी की है। तीन केन्द्रीय मंत्री और चार सांसदों को टिकट देकर। मोदी की गुडबुक में शिवराज का नाम नहीं है।
शिवराज को यह तभी समझ लेना चाहिए था,जब व्यापम मामले में उन्हें उनके खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश मोदी ने दिये थे। बीजेपी में दूसरी सूची में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम नहीं होने का मतलब है कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेरना। मध्यप्रदेश में अभी तक 35 बीजेपी के बड़े नेता और पूर्व विधायक बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। कांग्रेस कह रही है बीजेपी के सियासी गोदाम में जीताऊ उम्मीदवार नहीं हैं,इसलिए वह सांसद और केन्द्रीय मंत्रियों को विधान सभा चुनाव लड़ा रही है। क्यों कि उसे शिवराज पर अब भरोसा नहीं रहा।
सवाल यह है कि केन्द्रीय मंत्री और सांसदों का विधान सभा का चुनाव लड़ने पर इसे सियासी प्रमोशन कहें या फिर डिमोशन। यह ताज्जुब वाली बात है कि बीजेपी केन्द्र के लिए अपनी पार्टी का चेहरा बताती है, मगर राज्य के चुनाव के लिए नहीं। 2018 के चुनाव में जनआशीर्वाद यात्रा में शिवराज सिंह चौहान को पार्टी ने प्रमोट किया था,लेकिन 2023 के चुनाव में नहीं।
रमेश कुमार ‘रिपु’