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गुरु जी ने समझाया सत्संगति का महत्व


अशोक मिश्र

संगति की महिमा हमारे प्राचीन ग्रंथों में बहुत बताई गई है। व्यक्ति जैसी संगति में रहता है, वैसा ही आचरण करता है। यदि सत्संगति हुई, तो वह अपना, अपने गांव, प्रदेश और देश का नाम रोशन करेगा। वह जहां जाएगा, वहीं उसकी प्रशंसा होगी। उसका उतना ही सम्मान होगा, लेकिन अगर कोई कुसंगति में पड़ गया, तो उसका जीवन बरबाद होने के सिवा कुछ नहीं होता है। लोग उसकी बुराई करने से भी नहीं चूकते हैं। वह हर जगह घृणा का पात्र बनता है। कुसंगति में फंसा व्यक्ति अपना तो बुरा करता ही है, समाज में भी गंदगी फैलाता है। एक बार की बात है। एक गुरुकुल में गुरु जी अपने शिष्यों को संगति का महत्व समझा रहे थे। वह जो भी बताते उनके शिष्यों की समझ में नहीं आ रहा था। कई बार जब समझाने के बाद भी शिष्यों को सत्संगति का महत्व समझ में नहीं आया, तो उन्होंने कहा कि मेरे साथ आओ। वह अपने शिष्यों को लेकर एक बाग की ओर चल पड़े। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि एक पौधे में गुलाब खिले हुए हैं। उन्होंने अपने शिष्यों से पूछा कि क्या गुलाब की खुशबू आ रही है। सभी शिष्यों ने कहा कि हां गुरुजी! चारों ओर गुलाब की खुशबू बिखरी हुई है। वातावरण सुगंधमय है। तब गुरु जी ने कहा कि तुम गुलाब के पौधे के नीचे की मिट्टी लेकर आओ। एक शिष्य वहां गया और थोड़ी सी मिट्टी उठाकर लाया। गुरु जी ने कहा कि जरा मिट्टी को सूंघो। सूंघने पर पता चला कि मिट्टी से भी गुलाब की खुशबू आ रही है। तब गुरु जी ने कहा कि यही है सत्संगति का असर। पौधे से गुलाब की पंखुड़ियां, पत्तियां नीचे गिरती हैं तो उनके संपर्क में आकर मिट्टी भी सुगंधित हो गई है। यही है सत्संगति का असर। यह सुनकर सभी समझ गए।

अशोक मिश्र

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