भारतीय सेना के जाबांज शहीद मेजर शैतान सिंह भाटी के स्मारक को लेकर विवाद पैदा हो गया है। चुशुल के काउंसलर खोंचोक स्टानजिन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर दावा किया है कि रेजांग ला में स्थित इस स्मारक को तोड़ना पड़ा है। इस बात को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सहित कई विपक्षी नेताओं ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया है।
खोंचोक स्टानजिन का कहना है कि वर्ष 2020 में गलवान में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद मेजर शैतान सिंह भाटी का स्मारक बफर जोन में आ गया था जिसकी वजह से उसे तोड़ना पड़ा। वर्ष 2020 को गलवान में हुए संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। तब भारत सरकार ने दावा किया था कि चीन के भी ढेर सारे सैनिक इस संघर्ष में मारे गए थे। हालांकि चीन ने सिर्फ चार ही सैनिकों के मारे जाने की बात स्वीकार की थी।
मेजर शैतान सिंह के स्मारक को लेकर केंद्र सरकार साफ-साफ कुछ बताने को तैयार नहीं है। लद्दाख से बीजेपी के लोकसभा सांसद जामयांग छेरिंग नामग्याल का कहना है कि मेजर शैतान सिंह के पुराने मेमोरियल को हटाए जाने का संबंध बफर जोन से नहीं है। वो कहते हैं कि दरअसल पुराना मेमोरियल बहुत छोटा था इसलिए नया बनाया गया है। अब यह बात साफ नहीं है कि जो नया स्मारक बनाया गया है, वह पुराने स्मारक के स्थान पर है या फिर उसे नई जगह पर बनाया गया है।
मेजर शहीद सिंह का पुराना स्मारक जहां बना हुआ था, वर्ष 1962 के युद्ध में उनका लहूलुहान शव पाया गया था। 1962 युद्ध समाप्त होने के बाद भारतीय सैनिकों ने जहां उनका शव मिला था, वहीं एक स्मारक का निर्माण किया था। यह स्मारक कुमाऊं रेजिमेंट के लिए बहुत मायने रखता है क्योंकि मेजर शैतान सिंह कुमाऊं रेजिमेंट के थे। 1 दिसम्बर 1924 को राजस्थान के फलोदी जिले के बंसार गांव के एक राजपूत परिवार में जन्मे शैतान सिंह भाटी स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी करने पर सिंह जोधपुर राज्य बलों में शामिल हुए।
जोधपुर की रियासत का भारत में विलय हो जाने के बाद उन्हें कुमाऊं रेजिमेंट में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने नागा हिल्स आॅपरेशन तथा 1961 में गोवा के भारत में विलय में हिस्सा लिया था। भारत-चीन युद्ध में भारत के 123 में से 109 सैनिक शहीद हुए थे। वीरता और साहस की ऐसी मिसाल दुनिया के किसी युद्ध के दौरान शायद ही मिले।
जिस वीरता और बहादुरी के साथ भारतीय सैनिकों ने चीनी सेना का मुकाबला किया, वह बेमिसाल है। यहां आखिरी जवान ने आख्रिरी गोली रहने तक लड़ाई लड़ी थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2022 में भारतीय और चीनी सेना के बीच बातचीत शुरू हुई और बफर जोन भी बनाने पर सहमति बनी थी। खबरों में यह भी कहा गया कि बफर जोन में जो भी स्थायी ढांचे हैं उसे तोड़ दिया जाए या हटा लिया जाए इसलिए भारतीय सेना ने मेजर शैतान सिंह का स्मारक वहां से हटा लिया हो, ऐसा हो सकता है। लेकिन सच क्या है, यह वहां रहने वाले बता सकते हैं या फिर सरकार।
-संजय मग्गू