वी के पूजा
भारत एक कृषि प्रधान देश है, और जैसा कि सभी को विदित है कि कृषि ही मनुष्य की आजीवका का प्रमुख साधन है साथ ही कृषि कार्य शुरू से ही मनुष्य के लिए कठिन कार्यों मे से एक कार्य रहा है l कृषि के कार्य मे व्यस्त किसान और मजदूरों के साथ साथ हल मे चलने बैलों को एक माह मे दो अर्थात अमावस्या और पूर्णिमा के दिन आराम दिया जाता था l अमावस्या और पूर्णिमा के दिन बैलों की खास सेवा की जाती थी इसी सेवा की कड़ी मे अमावस्या व पूर्णिमा को बनी खीर भी बैलों को खिलाते थे l लेकिन आधुनिक मशीनी युग मे मशीनों के कारण बैल विलुप्त हो रहे हैं और इस तरह से आने वाली पीडी बैलों से अनभिज्ञ हो जायगी l इन्ही अमावस पूर्णिमाओं मे कुछ प्रमुख अमावस पूर्णिमा ने त्यौहार का रूप ले लिया l और प्रत्येक त्यौहार जुडा हुआ है किसान की फसल से और होली भी फसल पकने से जुडा हुआ त्यौहार है सर्दी के बाद किसान का पिछली फसल का अनाज खत्म हो चूका होता है और रबी की फसल तैयार हो चुकी होती है तब इसी ख़ुशी मे तैयार फसल को किसान एक दूसरे को बाँटते हैं और तैयार फसल की खुशी मे रंगा रंग कार्यक्रम आयोजित करते हैं और इसी पावन पर्व को होली कहते हैं और इसी दिन चैत्र मास प्रारम्भ अर्थात नव वर्ष भी इसी दिन प्रारम्भ होता है l हिन्दू संस्कृति के नव वर्ष का पहला दिन और शर्दी की फसल के तैयार होने की ख़ुशी मे ही रंगा रंग कार्यक्रम के आयोजन को ही होली कहते हैं l
पौराणिक कथाएं और होली के पावन पर्व को मनाने के पीछे और अनेकों मान्यताएं हैं l हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन यानी होली से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं और मान्यताएं भी हैं। हालांकि ज्यादातर लोगों को होलिका और भक्त प्रहल्लाद वाली कहानी पता है, लेकिन इसके अलावा शिवजी-कामदेव और राजा रघु से जुड़ी मान्यताएं भी हैं जो होलिका दहन से जुड़ी हैं। होलिका दहन से जुड़ी ये कथाएं और मान्यताएं हमें बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देती है। वहीं इनसे समानता और एकता की शिक्षा भी मिलती है l
हिरण्यकश्यपु राक्षसों का राजा था। उसका पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। राजा हिरण्यकश्यपु भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। जब उसे पता चला कि प्रह्लाद विष्णु भक्त है, तो उसने प्रह्लाद को रोकने की कोशिश की, लेकिन प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यपु प्रह्लाद को यातनाएं देने लगा। हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे गिराया, हाथी के पैरों से कुचलने की कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया। हिरण्यकश्यपु की होलिका नाम की एक बहन थी। उसे वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यपु के कहने पर होलिका प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी गोद में बैठाकर आग में प्रवेश कर कई। किंतु भगवान विष्णु की कृपा से तब भी भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन होने लगा और ये त्योहार मनाया जाने लगा l
एक और मान्यता के अनुसार मेघराज इन्द्र ने भगवान शिव को कामदेव से भस्म करने की ठानी, इंद्र ने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने का आदेश दिया। कामदेव ने उसी समय वसंत को याद किया और अपनी माया से वसंत का प्रभाव फैलाया, इससे सारे जगत के प्राणी काममोहित हो गए। कामदेव का शिव को मोहित करने का यह प्रयास होली तक चला। होली के दिन भगवान शिव की तपस्या भंग हुई। उन्होंने रोष में आकर कामदेव को भस्म कर दिया तथा यह संदेश दिया कि होली पर काम मोह, इच्छा, लालच, धन, मद इनको अपने पर हावी न होने दें। तब से ही होली पर वसंत उत्सव एवं होली जलाने की परंपरा प्रारंभ हुई। इस घटना के बाद शिवजी ने माता पार्वती से विवाह की सम्मति दी। जिससे सभी देवी-देवताओं, शिवगणों और पृथ्वी लोक पर मनुष्यों में हर्षोल्लास फैल गया। उन्होंने एक-दूसरे पर रंग गुलाल उड़ाकर जोरदार उत्सव मनाया, जो आज होली के रूप में पुरे भारत वर्ष मे घर-घर मनाया जाता है।
होली मनाने का एक कारण यह भी है कि राजा रघु के राज्य में ढुण्डा नाम की एक राक्षसी ने शिव से अमरत्व प्राप्त कर लोगों को खासकर बच्चों को सताना शुरु कर दिया। भयभीत प्रजा ने अपनी पीड़ा राजा रघु को बताई। तब राजा रघु के पूछने पर महर्षि वशिष्ठ ने बताया कि शिव के वरदान के प्रभाव से उस राक्षसी की देवता, मनुष्य, अस्त्र-शस्त्र या ठंड, गर्मी या बारिश से मृत्यु संभव नहीं, किंतु शिव ने यह भी कहा है कि खेलते हुए बच्चों का शोर-गुल या हुडदंग उसकी मृृत्यु का कारण बन सकता है। अत: ऋषि ने उपाय बताया कि फाल्गुन पूर्णिमा का दिन शीत ऋतु की विदाई का तथा ग्रीष्म ऋतु के आगमन का होता है। उस दिन सारे लोग एकत्र होकर आनंद और खुशी के साथ हंसे, नाचे, गाएं, तालियां बजाएं।
छोटे बच्चे निकलकर शोर मचाएं, लकडिय़ा, घास, उपलें आदि इकट्ठा कर मंत्र बोलकर उनमें आग जलाएं, अग्नि की परिक्रमा करें व उसमें होम करें। तब प्रजा ने राजा रघु की आज्ञानुसार राजा द्वारा प्रजा के साथ इन सब क्रियाओं को करने पर अंतत: ढुण्डा नामक राक्षसी का अंत हुआ। इस प्रकार बच्चों पर से राक्षसी बाधा तथा प्रजा के भय का निवारण हुआ। यह दिन ही होलिका तथा कालान्तर में होली के नाम से लोकप्रिय हुआ।
अन्य हिन्दू त्योहारों की तरह ही बुराई पर अच्छाई की ही विजय का प्रतिक है होली, साथ ही कृषकों की मेहनत द्वारा पक तैयार हूई फसल का उत्साह और हिंदू कैलेंडर विक्रमि संवत के आगमन की ख़ुशी का त्यौहार भी है होली और इस ख़ुशी के उपलक्ष मे ही ग़ुलाल अबीर लगा कर रंगा रंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और मनुष्य के अंदर अहंकार रूपी हिरणकश्यप अथवा अपने अंदर की बुराइयों को नष्ट करना, होली जलाने का प्रतीक भी है “होली ” l होली भीतर की दुष्प्रेव्रत्तियों को जलाने और प्रेम व सद्दभावना को बढ़ाने का पावन पर्व है l हमें और आपको अपने मन और समाज मे व्याप्त दुष्प्रेवृत्तियों को समाप्त करने का प्रण एक दूसरे को ग़ुलाल अबीर लगाते समय करना चाहिए l होली किसी भी प्रकार की वर्ण व वर्ग व्यवस्था की दूरियों को मिटाता है जो कि इन दूरियों को मिटाना आज के समय की एक बड़ी आवश्यकता है l होली के शुभ अवसर पर हम वातावरण को दूषित न करें इसके लिए हम कैमिकल युक्त रंगो से होली न खेले क्योंकि कैमिकल युक्त रंगो से आँखों को नुकसान हो सकता है और अधिक पानी भी नष्ट न करें इसका भी ध्यान रखें l प्रख्यात संत संत मोरारी बाबू जी कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण की होली तो जग जाहिर है ही, लेकिन प्रभु राम के साथ होली मतलब बैकुंठपुर l पुराने समय मे पिचकारी ऐसी होती थी नीचे झुक कर पानी भरो और ऊपर उठाकर किसी पर तानकर पानी छोड़ दो l ध्यान देने की बात यह है कि यही मुद्रा प्रभु राम के तीर चलाने की थी l प्रभु राम की कल्याण कारी होली , जिसने भी खेली उसे बैकुंठ दे दिया अर्थात उसे निज पद दे अपने स्वरूप के अंदर ही समा लिया l हम भी सभी आपसी द्वेषभाव मिटा प्रभु राम को याद कर मैत्री, करुणा और सद्भावना के साथ होली खेलें l
बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रमाण है होली
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