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कब तक महिलाएं भोगती रहेंगी ‘स्त्री’ होने की सजा?

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इस दुनिया में जब भी सबसे पहले राज्य और सत्ता की अवधारणा का जन्म हुआ, तो सत्ता ने राज्य विस्तार के लिए युद्ध जैसी घातक व्यवस्था को जन्म दिया। युद्ध लड़े जरूर दो कबीलों या गुटों के बीच गए, लेकिन उसका परिणाम स्त्रियों ने झेला। युद्ध के दौरान और युद्ध के बाद सबसे ज्यादा पीड़ा स्त्रियों को ही झेलनी पड़ी। पुरुष तो युद्ध में विजयी होकर सत्ता और स्त्री सुख भोगता रहा। पराजित होने पर एक बार ही पीड़ा झेली और जीवन से मुक्त हो गया। उन दिनों स्त्री को गुलाम बनाने और विपक्षी पुरुषों को मौत के घाट उतार देने की एक अलिखित, अघोषित परपंरा थी। हर विजेता स्त्रियों को सुख भोगने के लिए जिंदा रखता था और बच्चे से लेकर बूढ़े पुरुषों को मौत के घाट उतार देता था। सभ्य समाज का हिस्सा कहे जाने से पहले तक का इतिहास उठाकर देख लें, दुनिया के हर हिस्से में यही होता रहा है।

लेकिन स्त्री…कोख होने की सजा भुगतने के लिए अभिशप्त रही। युगों युगों से। स्त्री की कोख न होती, तो शायद पुरुषों की तरह सभी दुखों से मुक्त होती। प्रकृति ने भी स्त्री जाति को एक कोख देकर मानो किसी किस्म का बदला लिया। दुनिया में जितने भी युद्ध हुए, स्त्रियों की देह पर ही लड़े गए। जो जीत गया, उसने स्त्री देह को भोगा। जो हार गया, उसके नाम पर स्त्री को कभी स्वेच्छा से, कभी बलात जिंदा जला दिया गया। पति के साथ ताबूतों, पिरामिडों और मिट्टी में जिदा दफना दिया गया।

हर बार सारे दुख स्त्री के ही हिस्से में आए। मणिपुर में जो कुछ भी हो रहा है, वह भी एक किस्म का युद्ध ही है। जमीन के लिए जातीय युद्ध। इसका शिकार हो रही हैं महिलाएं। मणिपुर में मैतोई अनुसूचित जाति का दर्जा पाना चाहते हैं, कुकी और नगा इसका विरोध कर रहे हैं। मैतोई चाहते हैं कि वे अनुसूचित जाति के घोषित कर दिए जाएं ताकि पहाड़ी इलाके में वे जमीन खरीद सकें। कुकी और नगा अपनी जमीन बचाए रखना चाहते हैं।

मणिपुर के नियमों के मुताबिक अनुसूचित जाति की जमीन अनुसूचित ही खरीद सकता है। जमीन के इस झगड़े को अब मैतोई हिंदू और कुकी ईसाई झगड़े का रूप देने की कोशिश की जा रही है। इसे जमीन के लिए की जा रही हिंसा के बजाय धर्म को लेकर हो रही हिंसा बताकर अपने-अपने राजनीतिक हित साधने की कोशिश की जा रही है। उस पर सबसे दुखद बात यह है कि मैतोई महिलाएं कुकी महिलाओं के खिलाफ खड़ी हो रही हैं, तो कुकी महिलाएं मैतोई महिलाओं के खिलाफ। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, मणिपुर में जब तीन महिलाओं के साथ दुराचार किया जा रहा था, तो मैतोई महिलाएं खिलखिलाकर हंस रही थी, तालियां बजा रही थीं।

अपने भाई, पति, पिता और बेटों को बलात्कार के लिए उकसा रही थीं। इससे लज्जाजनक बात और क्या हो सकती है कि एक महिला ही दूसरी महिला का बलात्कार करने के लिए पुरुषों को उकसाए। मणिपुर में ही नहीं, दुनिया के किसी भी हिस्से में जब भी कोई हिंसक वारदात होती है, तो सबसे पहले स्त्री की अस्मिता पर ही हमला होता है। उसके साथ सामूहिक बलात्कार होता है, उसके शरीर के साथ खिलवाड़ किया जाता है, उसे नंगा करके घुमाया जाता है। ऐसा क्यों होता है? आखिर हम अपनी मानसिकता में बदलाव कब लाएंगे? यही यक्ष प्रश्न है।

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