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सुकरात की बात प्लेटो को चुभ गई

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बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
सुकरात का जन्म 479 ईसा पूर्व एथेंस में हुआ था। कहते हैं कि सुकरात देखने में असुंदर थे। नाक चपटी और आंखें उभरी हुई थीं। पेट भी बड़ा सा निकला हुआ था। उनके दोस्त उनका खूब मजाक उड़ाया करते थे। यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात को नैतिकतावादी दार्शनिक भी माना जाता है। उन्हें राजा के खिलाफ लोगों को भड़काने के आरोप में मृत्यु दंड दिया गया था। उन दिनों यूनान में जिसे मृत्यु दंड दिया जाता था, उसे पीने के लिए जहर का प्याला दे दिया जाता था। कहा जाता था कि उनके शिष्यों में प्लातोन नाम का एक शिष्य था। उसका पढ़ने लिखने में मन नहीं लगता था। जबकि सुकरात खूब पढ़ा करते थे। यही नहीं, जो भी उनसे मिलने आता था, वह उससे खूब सवाल करते थे। वह मानते थे कि जहां से भी जानकारी मिले, उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। एक बार की बात है। वह पुस्तकालय में बैठे पढ़ रहे थे। उन्होंने अपने शिष्य प्लातोन को किताबें व्यवस्थित करने के लिए कहा। एक तो वैसे भी उसका मन पढ़ने-लिखने में नहीं लगता था, ऊपर से उसके गुरु ने उबाऊ काम सौंप दिया था। उसने किताबें व्यवस्थित करते हुए कहा-गुरु जी! आप इतना कुछ पढ़ कैसे लेते हैं। सुकरात ने प्लातोन की बात सुनी और कहा कि तुम भी पढ़ना-लिखना शुरू करो वरना जीवन भर प्लातोन ही रह जाओगे। यूनानी भाषा में प्लातोन का मतलब बुद्धू होता है। यह बात प्लातोन के जी में लग गई। वह लाइब्रेरी को व्यवस्थित करने के बाद उसने पढ़ना शुरू कर दिया। अब उसका मन पढ़ने-लिखने में लगने लगा था। अंतत: एक दिन वह सुकरात का सबसे प्रिय शिष्य बन गया। लोगों ने अब उसे प्लातोन की जगह प्लेटो कहकर संबोधित करना शुरू कर दिया था। एक दिन वह खुद महान दार्शनिक बना।

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