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इंसानी हवस ने दुनिया को बना दिया बद से बदतर

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संजय मग्गू
आप कल्पना करके देखिए कि यदि भूख न होती, तो आज की दुनिया कैसी होती? यह भूख ही थी जिसने दुनिया को रंग-बिरंगी बनाया, खूबसूरती प्रदान की, महल अट्टालिकाएं बनाईं। और आज जो हम सूरज से आंख मिचौली कर रहे हैं, अपनी आकाशगंगा में ताकझांक कर रहे हैं, उसके पीछे भूख ही है। तो फिर इंसान के अलावा अन्य जीवों ने दुनिया को खूबसूरत और रंग-बिरंगी क्यों नहीं बनाया, भूख तो उन्हें भी लगती है? यह सवाल जायज है। लेकिन इसका जवाब यह है कि इंसान के अलावा अन्य जीवों ने सिर्फअपनी शारीरिक भूख ही मिटाई। जिज्ञासा और ज्ञान की भूख सिर्फ इंसानों ने मिटाई। यह भूख ही थी जिसने इंसानों को हजारों साल तक खानाबदोश रहने को मजबूर किया। इंसान उन दिनों इंसान होते हुए भी जंगली ही था। अन्य जीवों और जंगल में उगने वाले वनस्पतियों की तरह। इंसान अपनी भूख को मिटाने और हजारों साल से चली आ रही खानाबदोशी को तिलांजलि देकर स्थायित्व चाहता था। उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था कि उसकी नजर अन्न पर पड़ी। यह अन्न भी तब इंसानों की तरह जंगली ही थे। इंसानों ने अन्न के साथ अपनी दोस्ती बढ़ाई। नतीजा यह हुआ कि दोनों अपना जंगलीपन त्यागने लगे। इंसान अब धीरे-धीरे एक जगह टिककर रहना सीखने लगा। सबसे पहले उसे अन्न के रूप में मिला जौ। एकदम रूखा, भूसीदार। स्वाद भी कोई अच्छा नहीं, लेकिन इंसान की एक भूख तो मिटी कम से कम। पेट की भूख। ज्ञान की भूख ने जौ को गेहूं में बदलने को प्रेरित किया। कहा जाता है कि आज से दस-बारह हजार साल पहले इंसानों ने जौ को गेहूं में बदलने में सफलता प्राप्त कर ली थी। लेकिन वह जौ को भूला नहीं था किसी बेगैरत और मतलबपरस्त दोस्त की तरह। उन्हें जौ के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए अपने हर शुभ कामों में उसे शामिल किया। पूजा-अर्चना में जौ आज भी अगर उपयोग में लाया जाता है, तो यह इंसान का जौ के प्रति आभार व्यक्त करना ही है। फिर इसके बाद तमाम अन्न मिले इंसान को। इन अनाजों का उपयोग करना भी इंसानों ने धीरे-धीरे सीख लिया। इंसान और पशु में जो मौलिक अंतर आज से सदियों पहले था, वह अंतर आज भी मौजूद है। इंसान ने एक हाथ से अपने पेट की भूख मिटाई तो दूसरे हाथ को अपने ज्ञान की भूख मिटाने में लगा दिया। नतीजा, आज सबके सामने है। उसने अपने जीवन में आने वाली वस्तु, जीव और होने वाली हर घटना के पीछे कार्य और कारण का संबंध तलाशना शुरू किया, तो प्रकृति के रहस्य सामने आते चले गए। प्रकृति उसे बड़ी अनोखी लगने लगी। इसमें मनुष्य इतना रमा कि उसने कब प्रकृति का निर्मम शोषण करना शुरू कर दिया, इसका एहसास ही नहीं रहा। आज प्रकृति इंसानी कृत्यों से बिलबिला रही है। कराह रही है। लेकिन इसका कारण ज्ञान की भूख नहीं, सब कुछ पर अपना अधिकार कर लेने की हवस है। इंसान की हवस ने दुनिया को बदतर बना दिया, ज्ञान तो आज भी बेहतरीन से बेहतरीन दुनिया के निर्माण में लगा हुआ है।

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