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HomeEDITORIAL News in Hindiनई दिल्ली-कोलम्बो के बीच गतिमान होते रिश्ते

नई दिल्ली-कोलम्बो के बीच गतिमान होते रिश्ते

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शगुन चतुर्वेदी
श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके तीन दिवसीय यात्रा पर भारत पधारे। यहाँ पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, विदेशमंत्री और सुरक्षा सलाहकार के साथ द्विपक्षीय वार्ता के साथ कई अन्य सभाओं में सहभागी बने। सितम्बर में पदभार संभालने के बाद दिसानायके की यह पहली द्विपक्षीय भारत यात्रा है। पहले भी ऐसा होता आया है कि चुनाव जीतने के बाद श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति अपने पड़ोसी देश भारत की यात्रा को प्राथमिकता देते रहे हंै। दिसानायके की पहली यात्रा के लिए भारत को चुनने पर एक चर्चा का केंद्र बना। वे जिस पार्टी से संबंध रखते हैं, वह वामपंथी विचारधारा वाली पार्टी है इसलिए चीन को भारत के अपेक्षा ज्यादा प्राथमिकता देने की बात कही गई। हालाँकि उन्होंने भारत को प्रथम यात्रा के लिए चुना। श्रीलंका की विदेश नीति की इतिहास को देखा जाए तो वह गुटनिरपेक्ष नीति का अनुसरण करता आया है और भारत को प्राथमिकता और अहमियत देना जारी रखा है।
भारत में दिसानायके की गर्मजोशी से स्वागत स्पष्ट कर रहा कि भारत अपने पड़ोसी देशों को पहले प्राथमिकता देता है। चूंकि भारत व श्रीलंका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक एवं भाषाई संबंधों की ढाई हजार वर्षों की विरासत साझा करते हैं। इसी आधार पर दोनों देश ‘बौद्ध सर्किट’ और ‘रामायण ट्रेल’ के माध्यम से पर्यटन की अपार संभावनाओं को साकार करने के साथ कई अन्य परियोजनाओं के आधारशिला रखीं। दिसानायके की एक्स पोस्ट को देखा जाए जिसमें उन्होंने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, विदेशमंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के साथ भारत-श्रीलंका आर्थिक सहयोग को मजबूत करने, निवेश के अवसरों को बढ़ाने, क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देने और पर्यटन और ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों को आगे बढ़ाने को लेकर सार्थक चर्चा का उल्लेख किया है।
दरअसल, रणनीतिक साझेदार के रूप में दोनों देशों को एक दूसरे की जरूरत है। नए सरकार के गठन के बाद पीएम मोदी ने बधाई देते हुए कहा था कि भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति और विजन में श्रीलंका का महत्वपूर्ण स्थान है। हिंद महासागर क्षेत्र में श्रीलंका का स्थान भारत के सुरक्षा हितों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण केंद्र बनता है। भारत को श्रीलंका द्वारा दी जाने वाली विशेष प्राथमिकताओं की बात करें तो लम्बे प्रयास के बावजूद अभी ब्रिक्स समूह का हिस्सा नहीं बन पाया है। वर्तमान समय में ब्रिक्स संगठन की प्रासंगिकता को देखते हुए श्रीलंका को भारत की सख्त जरूरत है। इसीलिए अपने भारत के दौरे पर दिसानायके ने दोहराया कि श्रीलंका के भूभाग का प्रयोग भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए किसी भी तरह से नहीं किया जाएगा। भारत श्रीलंका का सबसे करीबी समुद्री पड़ोसी है। दोनों पक्षों ने श्रीलंका की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने और संयुक्त अभ्यास, समुद्री निगरानी और रक्षा वार्ता के माध्यम से सहयोग को बढ़ने के लिए रक्षा प्लेटफार्म और परिसम्पतियों का प्रावधान करने के लिए प्रतिबद्ध है।
चुनाव के पश्चात भारतीय मीडिया के गलियारों में ऐसा दावा किया जा रहा था कि वर्तमान राष्ट्रपति चीन को प्राथमिकता ज्यादा देंगे और भारत को कम। सुरक्षा जानकारों का कहना है कि भारत के दौरे से वापस जाने के बाद दिसानायके अगले साल जनवरी में चीन की यात्रा पर जाएंगे। इससे स्पष्ट है कि चीन के साथ श्रीलंका के दोस्ताना संबंध कम नहीं होने वाला है। प्रश्न है कि क्या वास्तव में दिसानायके श्रीलंका में चल रहे चीन की गतिविधियों पर लगाम लगाएंगे? उत्तर है शायद नहीं। श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को चीन ने कर्ज के बदले अपने कब्जे में पहले से ही रखा है और वहां की चीन की गतिविधियां भारत की चिंता बढ़ा रही है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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