Thursday, March 13, 2025
21.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiशराब बिक ही रही, तो शराबबंदी कानून के क्या मायने?

शराब बिक ही रही, तो शराबबंदी कानून के क्या मायने?

Google News
Google News

- Advertisement -

संजय मग्गू
बिहार के दो जिलों सारण और सीवान में पिछले चार-पांच दिनों में 51 लोगों की शराब पीने से मौत हो गई है। मरने वाले लोगों ने जो शराब पी थी, वह जहरीली थी। चूंकि बिहार में एक अप्रैल 2016 से शराबबंदी कानून लागू है, तो स्वाभाविक है कि यह शराब की बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध है। शराबबंदी का फैसला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का है। उन्होंने 26 अप्रैल 2015 में घोषणा की थी कि अगले वित्त वर्ष यानी एक अप्रैल 2016 से बिहार में पूरी तरह से शराबबंदी कानून लागू कर दी जाएगी। बाद में जब-जब शराबबंदी को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा चली, तो नीतीश कुमार ने यही कहा कि शराबबंदी से महिलाएं खुश हैं और उनके जीवन में खुशहाली आई है। किसी हद तक नीतीश कुमार की बात सही भी है। बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में शराब की वजह से घरेलू हिंसा की गुंजाइश काफी हद तक है। खासतौर पर गरीब परिवारों में। बिहार में जब शराबबंदी कानून लागू नहीं था, तब गरीब परिवारों के पुरुष अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा शराब पर उड़ा देते थे। शराबबंदी कानून लागू होने के बाद बिहार में एक नया व्यवसाय शुरू हुआ। कुछ लोग पड़ोसी राज्यों से लाकर बिहार में चोरी छिपे शराब बेचने लगे। उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दार्जिलिंग और यहां तक कि नेपाल से शराब की तस्करी होने लगी। जो शराब साल 2016 से पहले सौ-दो सौ में मिल जाती थी, उसके दाम आसमान चढ़ गए। गांवों में कच्ची शराब बनाकर बेचने का कारोबार शुरू हो गया। पुलिस भी देखकर अनदेखी करने लगी। बिहार का कोई शहर, कोई मोहल्ला ऐसा नहीं होगा, जहां शराब न उपलब्ध हो। पिछले चार दिनों में जो 51 लोग जहरीली शराब पीकर मरे हैं, उनमें से ज्यादातर लोग रोज शराब पीने वाले थे। कभी मुंबई प्रांत का हिस्सा रहे गुजरात में भी सन 1960 से ही शराबबंदी कानून लागू है। वहां भी चोरी छिपे शराब मिल ही जाती है। पड़ोसी राज्यों से तस्करी करके लाई गई शराब को महंगे दामों पर बेचा जाता है। शराबबंदी लागू होने के बाद जहरीली शराब पीकर मरने की घटना बिहार में कोई पहली नहीं है। सन 2022 में भी जहरीली शराब पीकर काफी लोग मरे थे। बिहार में लगभग बीस हजार करोड़ का शराब कारोबार होता है। पूरी एक पैरलल इकोनामी डवलप हो गई है। शराबबंदी से पहले जहां सौ रुपये में चार सौ एमएल शराब मिलती थी, वहीं अब सौ एमएल मिलती है। आर्डर देने पर होम डिलिवरी होती है। ऐसी स्थिति में शराबबंदी का क्या मतलब रह जाता है। प्रदेश को राजस्व का नुकसान होता है, वह अलग। बिहार में शराबबंदी कानून को लेकर राजनीति पहले भी होती रही है और चार दिनों में हुई मौत को लेकर भी राजनीति गर्म है। बिहार के सत्ताधारी दल के नेता भी दबी जुबान से शराबबंदी पर सवाल उठाते हैं। शराबबंदी का विरोध करने वालों का कहना है, जब बिहार के घर-घर में शराब बिक रही है, तो फिर ऐसे शराबबंदी कानून का क्या मतलब है

संजय मग्गू

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

Recent Comments