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नीतीश कुमार को अब भी चैन न आया तो किधर जाएंगे?

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शेख इब्राहिम जौक की गजल का एक बहुत प्रसिद्ध शेर है-अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे/ मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे। अगर मान लिया जाए कि लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा नीतीश कुमार (Nitish kumar) को दूध में पड़ी मक्खी की तरह गठबंधन से निकाल बाहर कर दे, तो नीतीश कुमार किधर जाएंगे? नीतीश कुमार बहुत पहले ही यह कह चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है। पीएम नरेंद्र मोदी के उभार से पहले नीतीश कुमार की एक स्पष्ट वैचारिक सोच हुआ करती थी। वह अपने को राम मनोहर लोहिया का उत्तराधिकारी बताते थे।

पीएम मोदी के आने से पहले भी वे भाजपा के साथ रहे हैं, लेकिन तब भी अपनी सोच और विचारधारा के स्तर पर समझौता नहीं किया। तब भी वे जो बोलते थे, उससे भाजपा इत्तेफाक नहीं रखती थी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जिन कारणों से जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन का साथ छोड़कर भाजपा के साथ गए हैं, वैसी ही स्थितियां अब भी नए गठबंधन में मौजूद हैं। इंडिया गठबंधन से अलग होते समय नीतीश कुमार ने कहा था कि आरजेडी के नेता जदयू को कमजोर करना चाहते थे। अपनी पार्टी को बचाने के लिए उन्होंने गठबंधन का साथ छोड़ा। भाजपा पहले ही यह साफ कर चुकी है कि उसकी पहली प्राथमिकता बिहार में अपने बलबूते पर सरकार बनाना है। भाजपा कोटे से उपमुख्यमंत्री बनाए गए सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा पहले से ही नीतीश कुमार विरोधी माने जाते रहे हैं। इन दोनों ने कई बार नीतीश कुमार की कटु आलोचना की है।

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ऐसी स्थिति में नीतीश कुमार के लिए तो एनडीए और इंडिया गठबंधन में समान परिस्थितियां हुईं। अब अगर वर्ष 2020 में पूर्णिया रैली में कही गई उनकी बात को सच मान लिया जाए, तो इंडिया गठबंधन में रहते हुए उनकी विदाई सम्मानजनक होती। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे अगले विधानसभा चुनाव में जदयू विधायकों की संख्या 45 से ज्यादा बढ़ाएं, वरना भाजपा कह सकती है कि सबसे बड़ी पार्टी का ही मुख्यमंत्री होगा। तब उनकी जो फजीहत होगी, वह उनके लिए शायद अच्छा न हो। वैसे यह सच है कि भाजपा और आरजेडी दोनों चाहते हैं कि जदयू कमजोर हो जाए।

इसी में उनका फायदा है। नीतीश कुमार के राजनीति से संन्यास लेते ही पूरी जदयू के बिखर जाने का अंदेशा है। नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी में अपना वारिस तय ही नहीं किया है। राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, उपेंद्र कुशवाहा, आरसीपी सिंह, प्रशांत किशोर जैसे लोग जो जदयू को संभाल सकते थे, वे अब पार्टी से ही बाहर हैं। जीतन राम मांझी अब अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं। ऐसी दशा में नीतीश कुमार के संन्यास लेते ही आधी जदयू भाजपा में और आधी राजद में चली जाएगी, ऐसी आशंका जाहिर की जा रही है। जनता दल यूनाइटेड का भविष्य क्या होगा, अब इसे समय ही तय करेगा।

संजय मग्गू

-संजय मग्गू

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