न्यूनतम समर्थन मूल्यों को लेकर 13 फरवरी से शुरू हुआ किसान आंदोलन जल्दी खत्म हो जाएगा, इसके आसार कम होते जा रहे हैं। 18 फरवरी को चौथे दौर की वार्ता फेल हो गई, तब ऐसा लगा कि किसान अब मानने वाले नहीं हैं। 13 फरवरी को शुरू हुआ आंदोलन पहले जितना आक्रामक और विस्तारित नहीं है। इसका कारण यह है कि इस बार के आंदोलन में सिर्फ पंजाब और छिटपुट हरियाणा के किसान शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के किसान संगठन इसमें शामिल नहीं हैं।
थोड़े बहुत किसान जो उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन कर रहे हैं, उसका कोई प्रभाव दिखाई नहीं पड़ रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा भी अभी पूरी तरह से इस आंदोलन में नहीं कूदा है। एसकेएम अभी अपनी योजना ही बना रहा है। इस बार किसान संगठनों की आपसी फूट भी सामने आ गई है। इसके बावजूद हरियाणा-पंजाब बार्डर पर जुटे हजारों किसान किसी भी समय उग्र हो सकते हैं, इसकी आशंका गहराती जा रही है। हरियाणा सरकार ने दिल्ली चलो कूच को विफल करने के लिए पहले ही तैयारी कर ली थी।
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दिल्ली को जाने वाले सभी बार्डरों पर सीमेंटेड बैरिकेड, सड़कों पर लंबी-लंबी कीलें गाड़कर किसानों के कूच की हवा निकाल दी है। अभी वे दिल्ली से बहुत दूर हैं, लेकिन जिस तरह पोकलेन, जेसीबी और अपने ट्रैक्टरों को बख्तरबंद गाड़ियों का रूप देकर किसान सिंधु, शंभू, टीकरी, ढासा, खनौरी आदि बार्डरों पर डटे हुए हैं, उससे लगता है कि किसान अपनी मांगों से इंच भर टलने वाले नहीं हैं। मनोहर लाल सरकार ने इस मामले में किसान संगठनों और पंजाब सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए हाईकोर्ट में भी गुहार लगाई है। हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को फटकार भी लगाई है, लेकिन पंजाब सरकार ने इस पूरे मामले से अपना पल्ला झाड़ लिया है।
किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच हुई वार्ता के दौरान मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भले ही मध्यस्थता की हो, लेकिन उन्होंने बहुत ज्यादा सक्रियता आंदोलन को खत्म कराने में नहीं दिखाई। अभी तक जो हालात हैं, उसके मुताबिक कहा जा सकता है कि पांचवें दौर की वार्ता यदि होती है, तो उसके सफल होने के आसार कम ही दिखाई दे रहे हैं। किसान आंदोलन के चलते आम जनता को काफी परेशानी हो रही है। लोगों को अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए काफी घूमकर जाना पड़ रहा है। जो दूरी दस पांच मिनट में तय हो जाती थी, उसी दूरी को तय करने में घंटों लग रहे हैं। दिल्ली की ओर जाने वाले रास्तों पर कई-कई किमी लंबे जाम लग रहे हैं। सबसे ज्यादा परेशानी बुजुर्गों, बच्चों और मरीजों को हो रही है। दिहाड़ी मजदूरों को काम मिलने में काफी परेशानी हो रही है। कारोबार ठप हो रहा है। कारोबारियों को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है।
-संजय मग्गू
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