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यदि अभी नहीं चेते तो प्रकृति लेगी क्रूरतम बदला

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संजय मग्गू
हमारी प्रकृति की सांसें घुटने लगी हैं। नब्ज धीमी पड़ती जा रही है। यदि अभी नहीं चेते, तो भावी पीढ़ी के लिए जीना कठिन हो जाएगा। कारण यह है कि पूरी दुनिया में वनों और वन्यजीवों की आबादी बड़ी तेजी से घट रही है। वन्य क्षेत्र का उपयोग मकान बनाने में, खेती करने में, सड़क बनाने में उपयोग हो रहा है। यदि इसी तरह वन्यक्षेत्र और वन्य जीव घटते रहे, तो पृथ्वी पर मानव जीवन संकटमय हो जाएगा। वैश्विक लिविंग प्लानेट इंडेक्स की रिपोर्ट बताती है कि पूरी दुनिया में तंजानिया देश के क्षेत्रफल के बराबर जंगल काटकर या तो फैक्ट्री, मकान, कालोनी या खेत बना दिए गए। सबसे ज्यादा वन्यक्षेत्र को ब्राजील, इंडोनेशिया, बोलिविया, कांगो जैसे देशों ने नुकसान पहुंचाया है। भारत में भी सन 1980 से 2021 के बीच 9.90 लाख हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग गैर वनीय कार्यों में किया गया है। इसमें से 90 फीसदी वन भूमि का उपयोग खेती करने में किया गया है। भारत के वन भूमि में से 60 हजार हेक्टेयर का उपयोग खनिज खनन में किया गया है। वहीं 45 हजार हेक्टेयर भूमि का उपयोग सड़क बनाने में किया। 36 हजार हेक्टेयर भूमि का इस्तेमाल सिंचाई परियोजना में किया गया है। वहीं 26 हजार हेक्टेयर भूमि का इस्तेमाल ट्रांसमिशन परियोजना में किया गया है। इंसान अपनी भूख मिटाने के लिए वन्य जीवों को अपनी मौत मरने के लिए मजबूर कर रहा है। खेती का क्षेत्रफल और आवासीय क्षेत्र लगातार बढ़ने के कारण प्रकृति में हर दस में से आठ जलीय जीव दम तोड़ रहे हैं। शेर, बाघ, चीता, हिरण, जिराफ, गैंडे और अन्य वन्य जीवों की संख्या लगातार घट रही है। जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है, भोजन की जरूरतें बढ़ती जा रही हैं। इसके बावजूद पूरी दुनिया में 73.5 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं। इनको दो जून की रोटी मयस्सर नहीं हो रही है। यदि यही स्थिति रही तो प्रकृति का विनाशक रूप बहुत जल्दी देखने को मिल सकता है। वैसे भी जलवायु परिवर्तन के रूप में संकट हमारे सामने आ खड़ा हुआ है। पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। ओजोन परतों में हुआ छेद लगातार बढ़ रहा है। कभी-कभी यह भी खबर आती है कि ओजोन परतों का छेद थोड़ा सा कम हुआ है, लेकिन यह भी सही है कि यदि हम नहीं चेते, तो निकट भविष्य में प्राकृतिक आपदा के रूप में हमें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। वन्य क्षेत्र घटने से पूरी दुनिया के देशों की जीडीपी पर असर पड़ना अनिवार्य है क्योंकि दुनिया की आधी जीडीपी के स्रोत यही वन्य क्षेत्र हैं। समुद्र का तापमान बढ़ने से जलीय जीवों पर एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है। ताजे पानी में रहने वाले जीवों की संख्या में 85 प्रतिशत तक कमी आ गई है। यह सब उस खतरे का संकेत हैं जिसका सामना निकट भविष्य में मनुष्य को करना होगा। यदि पूरी दुनिया के देशों ने मिलकर इसका समाधान खोजना होगा। सबसे पहले तो हमें वन क्षेत्र का रकबा बढ़ाना होगा ताकि वन्यजीवों को सुरक्षा मिलने के साथ-साथ प्रदूषण में भी कमी आए। जलवायु परिवर्तन की गति धीमी हो।

संजय मग्गू

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