पिछले साल जुलाई में एक आशा की किरण दिखाई दी थी कि भाजपा को आगामी लोकसभा चुनावों में कांटे की टक्कर मिलेगी। लेकिन अब विपक्षी एकता रूपी दीये की बाती की लौ फीकी पड़ने लगी है। ऐसा लगने लगा है कि इंडिया गठबंधन सचमुच बिखरने की कगार पर आ खड़ा हुआ है। वैसे कहने को तो इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इनक्लूसिव एलायंस यानी इंडिया गठबंधन में 28 दल शामिल हैं, लेकिन इनमें से सात दल ऐसे हैं जो कांग्रेस से टूटकर बने हैं। इन पार्टियों के नेताओं ने कांग्रेस से नाराज होकर अपनी अलग पार्टी बना ली थी।
इतना ही नहीं, सात दल ऐसे भी हैं जो कभी एनडीए यानी भाजपा के साथ सरकार बना चुकी हैं या सरकार में शामिल रही हैं। कोई दस-बारह पार्टियों के अलावा बाकी क्षेत्रीय दलों को वैसे कोई बहुत ज्यादा जरूरत भी गठबंधन की नहीं है। इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस पार्टी ही एक ऐसी पार्टी है जिसका जनाधार राष्ट्रीय स्तर पर है। देश के कई राज्यों में उसका वोट बैंक है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर बीस फीसदी वोट मिले थे, वहीं भाजपा को 37 फीसदी। अगर किसी राजनीतिक दल को इंडिया गठबंधन बिखरने पर नुकसान होने वाला है, तो वह है कांग्रेस क्योंकि कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। इंडिया गठबंधन में शामिल कुछ दल तो भाजपा के साथ-सथ कांग्रेस पर भी हमला करने से चूक नहीं रहे हैं। टीएमसी की ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल जब भी कुछ बोलते हैं, तो भाजपा के साथ कांग्रेस को भी लपेट लेते हैं।
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सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर ये दल अपना अलग राग अलाप रहे हैं। पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में अपने उम्मीदवार खड़ा करने की घोषणा दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान पहले ही कर चुके हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री भी अपने राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं। हालांकि इन्होंने गठबंधन से बाहर जाने की बात नहीं कही है। इसका मतलब यह है कि लोकसभा चुनाव के बाद जैसी स्थिति होगी, वैसा निर्णय लिया जाएगा। इन दलों का सीटों पर सम्मानजनक फैसला न हो पाने का सबसे बड़ा कारण यह है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को छोड़कर बाकी दूसरे दलों के पास खोने को कुछ नहीं है।
यदि इन दलों को लोकसभा चुनाव में कोई सीट नहीं भी मिली, तो इनकी राज्य में तो सरकार बची ही रहेगी। दिल्ली, पंजाब, पश्चिम बंगाल की सरकारों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। लेकिन कांग्रेस का तो सब कुछ दांव पर लगा है। शायद कांग्रेस के नेता बाकी दलों की इस मानसिकता से परिचित हैं, यही वजह है कि वे भी गठबंधन को लेकर उतने गंभीर नहीं दिखाई देते हैं। जिसने विपक्षी दलों को एक साथ मंच पर लाने की मुहिम शुरू की थी, वह नीतीश कुमार आज भाजपा की गोद में जा बैठे हैं। ऐसी स्थिति में सपा, राजद और दक्षिण भारत की कुछ पार्टियां इंडिया गठबंधन में बनी हुई हैं। कांग्रेस को भी उत्तर भारत में बहुत ज्यादा स्कोप दिखाई नहीं दे रहा है। यही वजह है कि राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा को लेकर अपने स्तर पर कांग्रेस को खड़ा करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
-संजय मग्गू
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