आज हम पचहत्तरवां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं। हमें गणतांत्रिक यानी लोकतांत्रिक और संप्रभु राष्ट्र बनने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। हमारे देश के हजारों नौजवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी है, तब जाकर हमें आजादी नसीब हुई है। ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों, शोषण और गुलामी के खिलाफ 1821 में बंगाल में शुरू हुई तित्तू मियां के नेतृत्व में किसानों की बगावत की श्रंखला सन 1947 तक चलती रही। इतिहास गवाह है कि बंगाल के किसानों की बगावत में शामिल पांच हजार लोगों को अपनी कुरबानी देनी पड़ी थी। बंगाल के किसान विद्रोह से पहले भी संगठित विद्रोह हुए थे और आजादी की यह मशाल जलती हुई 1857 तक पहुंची।
कुछ इतिहासकारों ने 1857 की बगावत को प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम कहा है, लेकिन सच यह है कि इस बगावत को इतिहास में राजे-रजवाड़ों का विद्रोह कहा गया है। इस विद्रोह में जनता की भागीदारी बहुत नगण्य थी। राजे-रजवाड़ों ने अपने राज्य को बचाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजाया था। इसके बाद भी स्वतंत्रता की चाह में देश के रणबांकुरे अपनी शहादत देते रहे। द्वितीय विश्व महायुद्ध के बाद जब अंग्रेजों को लगने लगा कि अब भारत को ज्यादा दिनों तक गुलाम बनाए रखना संभव नहीं है, तो उन्होंने हमारे देश को स्वतंत्र करने पर विचार करना शुरू किया और अंतत: 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वाधीन हो गया।
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इसके बाद देश के मूर्धन्य नेताओं ने आपसी विचार-विमर्श के बाद भारतीय संविधान को तैयार करने और तैयार संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू करने का फैसला किया। तभी से हमारा देश एक संप्रभु और स्वायत्त राष्ट्र के रूप में दुनिया के सामने आया। लोकतांत्रिक देश के रूप में पिछले 75 वर्षों में हमने ढेर सारी उपलब्धियां हासिल की है। जब हमारा देश आजाद हुआ था, तब हमारे सामने ढेर सारी समस्याएं थीं। उस समय देश की आबादी 35-36 करोड़ थी और हमें अपने देश का भाग्य अपने हाथों गढ़ना था। भारत को आजाद करके गए अंग्रेज हमारा सब कुछ लूटकर ले गए थे। उस समय के नेताओं ने धीरे-धीरे भारत को गढ़ना शुरू किया।
बाद में आने वाले लोगों ने भी देश को सजाया, संवारा और आज जिस सशक्त भारत में हम रह रहे हैं, उसमें सबका योगदान रहा। यही समावेशी विकास है। आज पचहत्तर साल बाद हमारे देश में मजबूत लोकतंत्र है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारा योगदान किसी भी विकसित देश से कम नहीं है। हम आज दुनिया की आंख में आंख मिलाकर बात करते हैं, हमारी बात पूरी दुनिया सुनने को एक तरह से बाध्य है क्योंकि वैश्विक जगत में हम एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर रहे हैं। इसका कारण यह है कि हमारे देश में लोकतंत्र की जड़ें काफी मजबूती से गहरी गड़ी हुई है। पूरा देश एक साथ विकास के पथ पर अग्रसर है, आज अमृतकाल की यही उपलब्धि है।
-संजय मग्गू