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अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में लगी इनेलो

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संजय मग्गू
कोई भी राजनीतिक दल हो, अपने अभूतपूर्व अतीत के भरोसे अपने मतदाताओं को नहीं लुभा सकता है। छिटपुट मतदाता तो उसके साथ खड़े हो सकते हैं, लेकिन समूह में मतदाता अपना वर्तमान हित देखता है। यही हाल हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल यानी इनेलो का है। एक समय ऐसा भी था, हरियाणा में इनेलो की तूती बोलती थी। इंडियन नेशनल लोकदल की स्थापना करने वाले चौधरी देवीलाल दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री और एक बार देश के उप प्रधानमंत्री रहे। जाट समुदाय के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे चौधरी देवीलाल को हरियाणा के लाल की उपाधि मिली हुई थी। यह उपाधि प्रदेश की जनता ने बड़े प्यार से दी थी। राष्ट्रीय राजनीति में भी इनेलो की थोड़ी-बहुत धमक थी। ऐसे गौरवशाली इतिहास की विरासत को समेटे इनेलो आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। प्रदेश के राजनीतिक गगन में पूरी तरह से कट चुकी इनेलो के सामने संकट यह है कि वह वोट प्रतिशत में तीसरे-चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गई है। इस पार्टी के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जिसके बल पर इनेलो चुनावी वैतरणी को पार कर सके। जिसकी चुनावी नैया सत्ता के गलियारे तक पहुंच सके। यही वजह है कि उसे दलितों को लुभाने के लिए बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन करना पड़ा। कभी जाटों के सबसे बड़ा चेहरा रहा चौटाला परिवार आज बिखर चुका है। इनेलो की आज हालत यह है कि प्रदेश की नब्बे सीटों के लिए उसे प्रत्याशी तक नहीं मिल पाए। किसी तरह खींचतान करके और दूसरे दलों से बगावत करने वाले नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करके 51 प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है। बसपा को 38 सीटें मिली हैं। वहीं उसे हलोपा से भी एक सीट पर गठबंधन करना पड़ा है। उम्मीदवारों को खड़ा करने में जिस तरह का संकट इनेलो को झेलना पड़ा है, उतना संकट शायद ही किसी दूसरी क्षेत्रीय पार्टी को झेलना पड़ा हो। इनेलो को अतीत में दलबदल और गुटबाजी का सबसे ज्यादा संकट झेलना पड़ा है। इनेलो के कद्दावर नेताओं ने या तो अपनी पार्टी खड़ी कर ली या भाजपा-कांग्रेस में चले गए। पारिवारिक कलह के चलते ही साल 2018 में जननायक जनता पार्टी का गठन हुआ। जजपा ने इनेलो के वोट बैंक में सेंध लगाई और सन 2019 में दस सीटें जीतकर भाजपा से समझौता करके सत्ता में भागीदार बनी। वहीं इनेलो को केवल एक सीट पर ही संतोष करना पड़ा। दस साल पहले तक प्रदेश की राजनीति में दूसरे नंबर पार्टी रही इनेलो आज प्रत्याशी के लिए तरस रही है, यही उसकी विडंबना है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में भी इनेलो के लगभग 31 नेता विभिन्न राजनीतिक दलों के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। स्वाभाविक है कि यह भी इनेलो के बचे खुचे वोट बैंक में ही सेंध लगाएंगे।

संजय मग्गू

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