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क्या गांव के लिए अस्पताल जरूरी नहीं?

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दरअसल किसी भी राष्ट्र की समृद्धि इस बात पर निर्भर करती है कि वहां के निवासी कितने सेहतमंद हैं? सेहत अच्छी होगी, तो शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी होगा। यही कारण है कि लगभग प्रति वर्ष बजट दौरान स्वास्थ्य के क्षेत्र में धनराशि की वृद्धि की जाती है। वर्ष 2023-24 के बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 89,155 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जो पिछले बजट से 13 प्रतिशत अधिक था। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा को बेहतर बनाने में भी खास जोर रहता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की वेबसाइट पर दिये गए ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2020 के आंकड़ों के अनुसार देश में कुल 15921 उप-स्वास्थ्य केंद्र, 30813 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 5649 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 1193 अनुमंडलीय अस्पताल और 810 जिला अस्पताल हैं।

आरएचएस के अनुसार देशभर में 24 प्रतिशत उप स्वास्थ्य केंद्र, 29 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 38 प्रतिशत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की कमी बताई गई है। वर्तमान में 10453 पीएचसी ऐसे हैं जो सप्ताह में 24 घंटे अपनी सेवाएं दे रहे हैं। बात आती है कि इतने स्वास्थ्य केंद्र होने के बावजूद ग्रामीण क्षेत्र में स्थित उप स्वास्थ्य केंद्रों का हाल बुरा क्यों है? क्या जर्जर, अभावग्रस्त, निष्क्रिय और मृतप्राय: उप-स्वास्थ्य केंद्र के भरोसे ग्रामीणों का स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है? सच तो यह है कि इन उप स्वास्थ्य केंद्रों पर केवल टीकाकरण और किसी विशेष अवसरों पर कागजी खानापूर्ति के लिए नर्स या स्वास्थ्य सेवक उपस्थित होते हैं।

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बाकी दिनों में यह उप स्वास्थ्य केंद्र पूरी तरह से ठप रहता है। न चिकित्सक और न कोई अन्य सुविधा रहती है। ग्रामीण झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाकर सेहत व पैसे बर्बाद करते हैं। कभी-कभार झोलाछाप डॉक्टरों के चक्कर में उन्हें जान भी गंवानी पड़ती है। प्रखंड स्थित पीएचसी जाने के लिए ग्रामीणों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। यह जरूर है कि प्रसव और परिवार नियोजन हेतु प्रखंड स्तर पर सरकार की अच्छी व्यवस्था है। जहां जाकर बच्चा-जच्चा दोनों ही सुरक्षित व स्वस्थ होकर घर लौटते हैं। एंबुलेंस की सुविधा होती है।

आशा दीदी भी गर्भवती महिलाओं की सेहत की सुरक्षा के बारे में घर-घर जाकर जानकारियां देती हैं। संचालन के तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे कई स्वास्थ्य केंद्र केवल दिखावा से अधिक कुछ नहीं है। देश के कुछ दूर दराज ऐसे भी गांव हैं जहाँ अस्पताल के नाम पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लोगों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। लेकिन बहुत अधिक सुविधा नहीं होने के कारण ग्रामीणों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसा ही एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र राजस्थान के बीकानेर जिला स्थित लूणकरणसर ब्लॉक का बिंझरवाली गांव है। करीब 400 की आबादी वाले इस गांव में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित है। जहाँ लोगों को स्वास्थ्य संबंधी कई सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं।

इस संबंध में गांव के एक युवक मेघवाल राम बताते हैं कि इस गांव का नाम बिंझर समुदाय के नाम पर है जो अनुसूचित जनजाति है और बहुत ही गरीब तबका है। हालांकि इसके अतिरिक्त इस गांव में उच्च जातियों की भी कुछ संख्या है। उन्होंने बताया कि इस गांव में सरकार की ओर से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उपलब्ध करवाया गया है। लेकिन एक प्रकार से वह अधूरा है क्योंकि अस्पताल में सुविधाएं तो हैं लेकिन डॉक्टर की तैनाती ही नहीं है। ऐसे में यह अस्पताल अधूरा है। उन्होंने बताया कि यहाँ केवल हफ्ते में एक दिन डॉक्टर आते हैं। ऐसे में अन्य दिनों में गांव वालों को स्वास्थ्य संबंधी समस्या आने पर ब्लॉक लूणकरणसर या फिर बीकानेर के बड़े अस्पताल का रुख करना पड़ता है।

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हालांकि उन्होंने भी माना कि यहाँ स्थायी रूप से किसी डॉक्टर की तैनाती नहीं है जिससे ग्रामीणों को इलाज कराने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। विशेषकर इमरजेंसी के समय गांव के गरीब लोगों को बहुत परेशानी होती है। लेकिन फिर भी वह अपने स्तर पर लोगों का इलाज करने का प्रयास करती हैं। इसके बावजूद डॉक्टर नहीं होने से वह बहुत अधिक कुछ नहीं कर पाती हैं। बहरहाल, गांव में अस्पताल उपलब्ध हो जाने से ही सुविधाओं का मिलना नहीं हो जाता है बल्कि उसमें डॉक्टर की तैनाती सबसे प्रमुख है। (चरखा)
(यह लेखिका के निजी विचार हैं।)

-गायत्री

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