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क्या बिखराव की ओर बढ़ चली है बसपा!

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बहुजन समाज पार्टी में इन दिनों भगदड़ मची हुई है। अंबेडकर नगर से बसपा सांसद रीतेश पांडेय ने रविवार यानी 25 फरवरी को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया और उसी दिन भाजपा में शामिल हो गए। रीतेश पांडेय का भाजपा में जाना तय था क्योंकि वे काफी दिनों से भाजपा नेताओं के संपर्क में थे। अमरोहा से सांसद दानिश अली को बसपा पहले ही पार्टी से निकाल चुकी है और वे कांग्रेस के संपर्क में हैं। बसपा सांसद अफजाल अंसारी को समाजवादी पार्टी पहले ही गाजीपुर से टिकट दे चुकी है। जौनपुर से सांसद श्याम सिंह यादव भी कांग्रेस में जाने को तैयार बैठे हैं। आगरा में वे अखिलेश यादव और राहुल गांधी की संयुक्त भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल हुए हैं।

इससे पहले भी राहुल गांधी की यात्रा में वे शामिल हुए थे। इनके अलावा भी बाकी सांसदों ने अपने-अपने ठीहे तलाशने शुरू कर दिए हैं। बसपा अपने सांसदों को मजबूती के साथ संगठन से जोड़ नहीं पा रही है। रीतेश पांडेय के भाजपा में जाने के बाद मायावती ने पार्टी छोड़ने वाले सांसदों पर ही अनुशासनहीनता, पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने और पार्टी के बारे में नकारात्मक टिप्पणी करने का आरोप लगाया है। दो महीने के भीतर ही लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज  उठेगी, यह तो तय ही है। ऐसी स्थिति में बसपा में उठने वाली भगदड़ की लहर सुनामी बने, इससे पहले बसपा सुप्रीमो मायावती को कमान अपने हाथ में लेनी होगी। वैसे बसपा ने यह घोषणा की है कि उत्तर प्रदेश में वह अकेले लड़ेगी। गठबंधन में चुनाव लड़ने पर बसपा का वोट तो सहयोगी को ट्रांसफर हो जाता है, लेकिन सहयोगी दल का वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं होता है।

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अगर पुराने आंकड़ों के आधार पर बात की जाए, तो मायावती का यह आरोप बिल्कुल गलत है। वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव बसपा ने अकेले लड़ने का फैसला किया था। उस चुनाव में बसपा का खाता तक नहीं खुला था, लेकिन जब उसने वर्ष 2019 में सपा से गठबंधन करके चुनाव लड़ा, तो उसे दस सीटें प्राप्त हुई थीं, लेकिन सपा को केवल पांच सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। इसका यही मतलब है कि सपा का वोट तो बसपा को ट्रांसफर हुआ, लेकिन बसपा का वोट ट्रांसफर नहीं हुआ। अगर बसपा का चुनावी ग्राफ देंखे, तो वर्ष 2012 से बसपा ढलान पर है।

मायावती ने भी पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करना और जनांदोलन करना बंद कर दिया है। नतीजा यह हुआ कि बसपा का पारंपरिक वोट दूसरे दलों की ओर खिसकने लगा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार लोकसभा में बसपा का वोट बैंक सपा और कांग्रेस की ओर जा सकता है। बढ़ती उम्र की वजह से मायावती की सक्रियता लगभग बंद होने से बसपा में एक किस्म की निराशा घर कर रही है। बसपा के उत्तराधिकारी बनाए गए आकाश आनंद भी अभी तक अपने समर्थकों को आश्वस्त नहीं कर पाए हैं।

संजय मग्गू

-संजय मग्गू

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