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घोसी उपचुनाव जीतना भाजपा के लिए आसान नहीं?

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उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट के लिए होने वाले उपचुनाव के लिए 5 सिंतबर को मतदान होना है। चुनाव प्रचार आज से खत्म हो गया। एक तरह से कहा जाए कि इंडिया गठबंधन के लिए किसी भी किस्म का यह पहला चुनाव है। लेकिन इसे इंडिया गठबंधन का लिटमस टेस्ट नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यहां भाजपा और सपा ही मुख्य मुकाबले में है। हां, गठबंधन के मुताबिक कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। घोसी विधानसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी के रूप में दारा सिंह मैदान में हैं, तो वहीं सपा प्रत्याशी के रूप में सुधाकर सिंह ताल ठोक रहे हैं। आज चुनाव प्रचार का अंतिम दिन होने की वजह से भाजपा और सपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दिया है।

2 सितंबर को घोसी विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार करने पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ अपने प्रत्याशी के दलबदलू होने के मामले में सफाई देते हुए सिर्फ इतना ही कह पाए कि सुबह का भूला शाम को लौट आए तो इसे भूला नहीं कहा जा सकता है। मुख्यमंत्री ने अपने चुनावी भाषण में उन सभी बातों का जिक्र किया जिससे दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़ों को प्रभावित किया जा सके। लेकिन चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि इससे भी मामला जमता नजर नहीं आ रहा है। भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह का दल बदलने का एक लंबा इतिहास रहा है। कहा जाता है कि दारा सिंह ने अपने राजनीतिकजीवन की शुरुआत कांग्रेस से की थी।

इसके बाद उन्होंने सपा की सदस्यता ले ली। कुछ समय सपा में रहने के बाद उन्हें बसपा में जाना फायदेमंद लगा, तो वे बसपा की गोद में बैठ गए। कुछ साल बसपा में रहने के बाद उनका मन यहां भी ऊब गया, तो वे भाजपा में चले गए। भाजपा से जल्दी ही उनका मोह भंग हुआ और वे एक बार फिर सपा के पाले में चले आए। सपा के टिकट पर उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को घोसी विधानसभा सीट से हराया। वर्ष 2022 के ठीक विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में मंत्री रहे दारा सिंह ने सपा का दामन थामा था। भाजपा छोड़ते समय उन्होंने कहा कि उनका दम घुट रहा था वहां। लेकिन सपा में जब उन्हें अहमियत नहीं मिली, तो वे एक बार फिर भाजपा के पाले में चले आए और अब वे भाजपा के घोसी विधानसभा सीट के लिए उम्मीदरवार हैं।

सच तो यह है कि दारा सिंह के बार-बार दल बदलने से भाजपा के ही कार्यकर्ता नाराज हैं। वे सच्चे मन से दारा सिंह के साथ नहीं हैं। एक पार्टी उम्मीदवार के लिए जो जोश और जूनून किसी कार्यकर्ता में होना चाहिए, उसका इस बार पूरी तरह अभाव नजर आ रहा है। घोसी विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता करीब एक लाख (सबसे ज्यादा अंसारी बुनकर) , लगभग 90 हजार से अधिक दलित मतदाता, 50 हजार राजभर (जिसमें नुनिया (कुर्मी) भी शामिल हैं), 50 हजार चौहान (पिछड़े) जो दारा सिंह चौहन की बिरादरी के हैं, 20 हजार निषाद, 15 हजार ठाकुर, 15 हजार भूमिहार, आठ हजार ब्राह्मण और 30 हजार वैश्य वोटर हैं। इनमें से कितने वोट भाजपा के पक्ष में जाएंगे,यह तो 8 सितंबर को ही पता चलेगा। लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि भाजपा के लिए यह चुनाव जीतना आसान नहीं है।

संजय मग्गू

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